पर्दा के पक्षिपातियों को सोना की हरएक हरक़त में बुराई
छोड़ भलाई नजर ही न अती थीं । मुहल्ले के बिगड़े
दिल शोहदे, सोना के दरवाज़े पर से दिन में कई बार चक्कर
लगाते और आवाज़ें कसते ।
किन्तु न तो सोना का इस तरफ ध्यान होता और न उसे इसकी कुछ परवाह थी। वह तो प्रकृति की पुजारिन थी । खिड़की-दरवाजों के पास वह प्रकृति की शोभा देखती थी; लोगों की बातों की ओर तो उसका ध्यान भी न जाता था।
इसी बीच में, किसी काम से सोना की सास को कुछ
दिन के लिए गाँव पर जाना पड़ा। अव पति के आफिस
जाने के बाद से उसे पूरी स्वतंत्रता थी। उनके आफिस
जाने के बाद वह स्वच्छन्द हिरनी की तरह फिरा करती
थी । कोई रोक-टोक करने वाला तो था ही नहीं; अव
कभी-कभी वह चिक के बाहर भी चली जाया करती ।
आस-पास को कई औरतों से जान-पहिचान भी हो गई ।
वे लोग सोना के घर आने-जाने लगीं। सोना भी कभी-
अभी लुक-छिप के दोपहर के सन्नाटे में उनके घर हो
आती। सोना के बारे में, उसके आचरण के विषय में