रहने वाले शहर का हाल-चाल क्या जाने ? पर तुमने
मेरी सोना को अपनी लड़की सरीखी समझ कर जो उसके
लिए इतनी दौड़-धूप की है और ऐसा अच्छा जोड़ मिला
दिया है, इस उपकार का फल तुम्हें ईश्वर देगा ।
नारायण-अच्छा तिवारी जी अब जाकर विवाह की तैयारी करो । देखना इन्हें खाने-पीने का कुछ कष्ट न होने पावे । शहर के आदमी हैं; सब तकलीफें सह लेंगे, पर भूख नहीं सह सकेंगे । खाते भी अच्छी हैं, देहात की मिठाई उन्हें अच्छी न लगेगी; कोई शहर का ही हलवाई ले जाकर मिठाई बनवा लेना, समझे ।
तिवारी जी खुशी-खुशी घर लौटे । घर आकर जब उन्होंने नन्दी के सामने वर के रूप और गुण का बखान किंवा तो नन्दो फूली न समाई। वह जैसा घर-वर सोना के लिए चाहती थी, ईश्वर ने उसकी साध पूरी कर दी। इस कृपा के लिए उसने परमात्मा को शतशः धन्यवाद दिए और नारायण को उसने कोटि-कोटि मन से आशीर्वाद दिया, जिसने इतनी दौड़-धूप करके मन-चाहा घर और वर सोना के लिए खोज दिया था।
सोना ने जब सुना कि उसका विवाह हो रहा है तब ,
वह ढो़ड़ कर आई; उसने मां से पूछा-