'सास मुझे अपने साथ कुएँ पर पानी भरना सिखा रही
थीं । अचानक वे न जाने कहाँ से आगए, हँसकर बोले-
“क्या पानी भरने की शिक्षा दे रही हो, माँ जी ? अपने
ऐसी अल्हड़ लड़की व्याही ही क्यों, जिसे पानी भरना भी
नहीं आता ।” मैने घूँघट के भीतर ही ज़रा सा मुस्कुरा
दिया ।
सास ने कहा--बेटा ! इसे कुछ नहीं आता ! बस रोटी भर अच्छा बनाती है, न पीसना जाने न कूटना । गोबर से तो इसे जैसे घिन आती हो, बड़ी मुश्किल से तो कहीं कंडे थापती है, तो उसके बाद दस वार हाथ धोती है । हम तो बेटा ! गरीब आदमी हैं। हमारे घर में तो सभी कुछ करना पड़ेगा।
[ २ ]
दूसरे दिन मुझे अकेली ही पानी भरने जाना पड़ा। मैं
रस्सी और घड़ा लेकर पानी भरने गई तो जरूर, पर दिल
धड़क रहा था—कि बनता है या नहीं। न सास साथ
थीं, और न कोई कुएँ पर ही था। मैंने घूँघट खोल लिया।
और रस्सी को अच्छी तरह से घड़े के मुँह से बाँध कर
कुएँ में डाल दिया। ‘डब’ ‘डब' करके बड़ी देर में कहीं