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[ आहुति


उसने भी एक लेख लिखा; विषय थी "भारत की वर्तमान सामाजिक अवस्था में स्त्रियों का स्थान ।” राधेश्याम जी ने भी लेख देखा । बहुत ही प्रसन्न हुए, लेख लिए हुए वे बाहर गए; बैठक में कई मित्र बैंठे थे; उन्हें दिखलाया। सभी ने लेखिका की शैली एवं सामयिक ज्ञान की प्रशंसा की ।

अपने एक साहित्य-सेवी मित्र अखिलेश्वर को लेकर राधेश्याम भीतर आए; कुन्तला को पुकार कर बोले- “कुन्तला, तुम्हारा लेख बहुत ही अच्छा है; मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतना अच्छा लिख सकती हो, नहीं तो तुमसे सदा लिखते रहने का आग्रह करता। तुम्हारे इस लेख में कहीं भाषा की त्रुटियाँ हैं ज़रूर, पर ये मेरे मित्र अखिलेश्वर ठीक कर देंगे। अब तुम रोज़ कुछ लिखा करो; ये ठीक कर दिया करेंगे । मुझे तो भाषा का ज्ञान नहीं; अन्यथा मैं ही देख लिया करता। खैर कोई बात नहीं; यह भी घर ही के-से आदमी हैं। कुन्तला के लेखों के देखने का भार अखिलेश्वर को सौंप कर राधेश्याम को बहुत सन्तोष हुआ।

"कुन्तलाको अव एक ऐसा साथी मिला था, जिसकी

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