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बिखरे मोती ]
 

ठहरौनी के कोई बात ही नहीं करता। कुछ ही में हैं। विचारे । लड़की सयानी है । पढ़ा-लिखा कर किसी मूर्ख के गले भी तो नहीं बांधते बनता ।

एक बार तिवारी जी पर उपकार करने की संद्-भावना से राधेश्याम जी का हृदय आतुर हो उठा; किन्तु तुरन्त ही मनोरमा की स्मृति ने उन्हें सचेत कर दिया । तिवारी जी पर उपकार करना, मनोरमा को हृदय से भुला देना था । राधेश्याम को जैसे कोई भूली बात याद आ गई हो; वे अपने आप ही सिर हिलाते हुए बोल उठे,“नहीं, यह कभी नहीं हो सकती ।" राधेश्याम के हृदय की हलचल को जगमोहन ने ताड़ लिया। बार करने का उन्होंने यहीं उपयुक्त अवसर समझा; सम्भव है, निशाना ठीक पड़े।

जग०-तुम क्या कहते हो राधेश्याम ? है न लड़की बड़ी सुन्दर ? पर बिचारी को कोई योग्य वर ही नहीं मिलता । अगर तुम इससे विवाह कर लो तो कैसा रहे ?

राधेश्याम उदासीनता से वोले-भाई लड़की सुन्दर तो जरूर है; पर मैंने तो विवाह न करने की प्रतिज्ञा कर ली है।

जगमोहन उत्साह भरे शब्दों में बोले-अरे छोड़ो भी !

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