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[भूमिका
श्रीमती जी की कहानियों में उनके कवि-हृदय की झलक भी कहीं-कहीं स्पष्ट देखने को मिल जाती है, जिसके कारण कहानियों का सौन्दर्य और अधिक बढ़ गया है।
मुझे पूर्ण आशा है कि हिन्दी-संसार इन कहानियों का आदर करके श्रीमती जी का उत्साह बढ़ायेगा। क्योंकि हिन्दी साहित्य भविष्य में भी श्रीमती जी की रचनाओं से गौरवान्वित होने की आशा रखता है।
बंगाली मोहाल | विश्वम्भरनाथ शर्म्मा 'कौशिक' |
कानपुर | |
१८ सितम्बर १९३२ |
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