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[ मछुए की बेटी
 


उन्हें रह रह कर मनोहर के भाग्य पर ईर्षा होती थी। वह सोचते मनोहर किस प्रकार तिन्नी के पास बैठकर नाव चलाया करता था । तिनी कैसी घुल-मिलकर हंसती हुई उससे बातें किया करती थी। एक मामूली आदमी हो कर भी मनोहर कितना सुखी है। काश ! मैं भी एक मछुआ होता और तिन्नी के पास बैठकर नाव चला सकता; तो कितना सुखी न होता ?

किन्तु वे कभी किसी से कुछ भी न कहते । हां! अब उन्हें आखेट से रुचि न थी । शतरंज के वे बहुत अच्छे खिलाड़ी थे; किन्तु अब मुहरों की ओर उनसे आँख उठाकर देखा भी न जाता । अध्ययन से भी उन्हें बड़ा प्रेम था। उनकी लायब्रेरी में विद्वान लेखकों की अच्छी से अच्छी पुस्तकें थीं; किन्तु उन पर अब इंचों धूल जम रही थी।

यार दोस्त आते; घंटों छेड़छाड़ करते; किन्तु कृष्णदेव में तिल-भर का भी परिवर्तन में होता । उनके अन्तर- ‘जगत में कितना भयंकर तूफान उठ रहा था, यह किसे मालूम था। कृष्णदेव अपनी वेदना चुपचाप पी रहे थे। किन्तु उनकी आंतरिक पीड़ा को उनकी शारीरिक अवस्था

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