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[ मछुए की बेटी
 


में युवक को विशेष आनन्द आता था । इसलिए वह प्राय: इसी प्रकार के बेसिर-पैर के प्रश्न करके उसे चिढ़ा दिया करता था। किन्तु आज तो बात जरा टेढी़ हो गई थी। तिन्ना ने क्रोधावेश में यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि अब वह युवक से बोलेगी ही नहीं; इसलिए मुँँह फेरकर वह तेजी से घाट की ओर चल दी । युवक ने तिन्नी का रास्ता रोक लिया और बड़े विनीत और नम्र भाव से बोला-

“तिन्नी! सच बता दे मेरी तिन्नी ! मैं तेरा डाँड़ चला दूंगा, तेरा आधा काम कर दूंगा ।

तिन्नी के क्रोधित मुख पर हंसी नाच गई। युवक उसके साथ डांड़ चला देगा; उसे एक साथी मिल जावेगा; इस बात को सोचकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। वह बोली-- सच कहते हो ? मेरे साथ तुम डांड़ चलाओगे ? देखो, बापू नहीं हैं; मैं अकेली हूँ। यदि तुम सचमुच मेरे साथ डांड़ चलाने को कहो, तो फिर में बताती हूँ।,

"सच नहीं तो क्या झूठ ? में डाँड़ जरूर चलाऊंगा; पर पहिले तुझे बताना पड़ेगा ", युवक ने कहा।

"इधर अपने पास ही कोई रियासत है न ? वहीं के राजा साहब नदी के उस पार शिकार खेलने

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