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मछुए की बेटी

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चौधरी और चौधराइन के लाड़ प्यार ने तिन्नी को बड़ी ही स्वच्छंद और उच्छृंखल बना दिया था। वह बड़ी ही निडर और कौतूहल-प्रिय थी। आधीरात पिछली पहर, जब तिन्नी की इच्छा होती वह नदी पर जा कर नाव खोल कर जल विहार करती और स्वच्छ लहरों पर खेलती हुई चन्द्र किरणों की अठखेलियां देखती।

यही फन्या चौधरी की सब कुछ थी; किन्तु फिर भी आज तक चौधरी उसका विवाह न कर सके थे; क्योंकि कन्या के योग्य कोई वर चौधरी को अपनी जात में न देख पड़ता था। इसलिए तिन्नी अभी तक कॉरी ही थी।

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