कर पोठ पर झूलते हुए पूँछ–“किस्मत कहाँ है ? भौजी
मुझे भी बता दो ।”
सिल पर का पिसा हुआ मसाला कटोरी में उठाते हुए किशोरो ने एक ठंडी साँस ली; बोली-किस्मत कहाँ है मुन्नी,क्या बताऊँ।"
अँचल से आँसू पोंछकर किशोरी ने तरकारी बघार दी। खाना तैयार होने में अभी आध घन्टे की देर थी। इसी समय मुन्नी की माँ गरजती हुई चौके में अई; बोली दस, साढ़े दस बज रहे हैं। अभी तक खाना भी नहीं बना ! बच्चे क्या भूखे ही स्कूल चले जायेंगे ? बाप रे बाप !! मैं तो इस कुलच्छनी से हैरान हो गई। घर में ऐसा कौन सा भारी कम है, जो समय पर खाना भी नहीं तैयार होता है दुनियाँ में सभी औरतें काम करती हैं। था तू ही अनोखी काम करने वाली है !"
एक साँस में, मुन्नी की माँ इतनी बातें कह गईं; और पटा बिछाकर चौके में बैठ गई। किशोरी ने डरते-डरते कहा-“अम्मा जी, अभी तो नौ हो बजे हैं; आध घंटे में सब तैयार हो जाता है; तुम क्यों तकलीफ करती हो ?”.
चिमटा खींच फर किशोरी को मारती हुई सास