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फे पारण उस महापुरुष मे ससार के भविष्य को बदलने की पद पदवी या दौलत और यश का लालच नथा। उनका त्याग और बलिदान इसलिए और भी महान् बन गया था कि उसके साथ वे पूरे निर्भय भी थे। महाराज और सरकार, सगीनें और पर एक रेखा तक खीचने में असमर्थ थी। वे यथाय मे मुक्तारमा उनके जीवन मे बचपन की मरलता, सत्य के प्रति अटल भाग्रह और मानवता के प्रति अटूट प्रेम था। इन्ही सब गुणा 8 बा और बापू का किसान या मजदूर ऐसा हो जो कि बापू को मनुष्य-मात्र का मित्र न समझता हो। लोग समझते थे कि बापू दुनिया मे सतयुग' लाने वाले हैं। वापूबधनमुक्त जीवन के जन्मदाता थे। उनको पवित्रता और तेज का प्रभाव राजा और रक, सव पर एक-सा पडता था। उनका कहना था-सच्चे रहो, और हृदय को निमल और सरल रखो, दुख मे भी प्रसन्न रहो तथा भय आने पर स्थिर रहो। जीवन मे प्रीति रखो और मृत्यु से मत डरो। बापू से लाखो-करोडो नर-नारियो को प्रेरणा मिली। उन्होंने ही भारत को आजादी दिलाई। वे ऐसे खरी-खरी कहने वाले थे कि एक बार होरेस एलेग्जेण्डर ने, जो एक नामी अग्रेज़ थे, जब वापू से पूछा, "क्या आप अग्रेजो के लिए कोई सदेश देंगे?" तो वापू ने झट कहा, "सबसे पहली बात हम यह चाहते हैं कि आप लोग अब हमारी गर्दन पर सवार न रहे।" वापू की सफलता का कारण उनका सय और त्याग था। लोग सेवा करते हैं और उस पूजी को लेकर खूब लाभ उठाने की खटपट करते हैं। वापू ऐसे लोगों मे नही थे । उनके जीवन का नाम ही त्याग था, वे स्वय त्याग-रूप थे। उन्ह किसी शक्ति, किसी ब, जुल्म और कार कोठरी, यहा तक कि मृत्यु भी उनके मन थे।