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जेल और पत्र 63 या कुछ कमी है ? डाक लेकर कौन जाएगा आदि-आदि। कभी- कभी तार से या खास आदमी के द्वारा लेख भेजे जाते थे। उनके लेख अग्रेजी, गुजराती और हिन्दी मे निकलते थे। पहले 'यग इन्डिया' और 'नवजीवन निकलते थे, बाद में उनकी जगह 'हरिजन', 'हरिजन-बन्धु' और 'हरिजन सेवक' निकलने लगे। इन पत्रो के द्वारा देश मे नये भाव, नई भाषा और नई विचारशैली को बापू ने जन्म दिया। उनके पत्रो की ग्राहक-सस्या साठ हजार तक पहुच गई थी। इन लेखो को देश-विदेश के विविध पत्र उद्धत करते रहते थे। सन् '42 के 'हरिजन' के लेखो ने कुछ ही दिनो मे देश मे क्राति की आग भडका दी और 'भारत छोडो आन्दोलन खडा कर दिया। बापू की लेखन शैली ओजपूण, सादी और स्पष्ट होती थी। अच्छे-अच्छे अग्रेज भी उनकी अग्रेजी के कायल थे। बापू अपने लेख को एक बार लिखकर शायद ही उसमे काट- छाट करते थे। उनके विचार इतने स्पष्ट और दृढ होते थे कि उनमें अदल-बदल की कुछ भी गुजाइश नहीं होती थी । उनका कहना था कि लेख लिखते समय वे ऐसा अनुभव करते थे कि कोई दूसरी शक्ति उनसे लिखवा रही है। फिर भी वह लेख हो या पत्र, जव तक एक बार दुबारा पढ नहीं लेते थे, उसे जाने नही देते थे। दूसरो के लिखे तथा टाइप किए पतो और लेखो को भी वे स्वय देखते थे। यहा तक कि महादेव देसाई तक अपने लेख तब तक नहीं भेज सकते थे, जब तक कि वे सुनकर उसे मजूर न कर लें। इस समय तक बापू द्वारा लिखित पुस्तको की संख्या सौ से ऊपर है। मुद्रक सोहन प्रिंटस, शाह