उपवास 61 आगाखा महल मे भी ऐसा ही हुआ। डा० विधानचन्द्र राय घबरा उठे, परन्तु वहा भी हालत स्वय स्वाभाविक हो गई। यह देख डा विधानचन्द्र राय ने कहा था कि हमारी हिम्मत वहा नहीं पहुची है, जहा वापू पहुच चुके है।