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प्राकृतिक चिकित्सा पर विश्वास प्राकृतिक चिकित्सा पर बापू को बडा विश्वास था। हवा, पानी, मिट्टी और सूर्य-प्रकाश-ये चार उनकी औषध थी। मिट्टी को तो वे मा के दूध के समान मानते थे। पेट पर मिट्टी बाधना उनका नित्य का नियम था। आवश्यकता होने पर वे माथे पर भी मिट्टी बाधते थे। एक बार उनकी ठोडी पर एक मस्सा निकल आया तो उसपर भी गिट्टी बाघ दी गई। एक बार खाना खाने के समय एक चील ने झपट्टा मारा, इससे उनके अगूठे से खून निकल आया, उस पर भी मिट्टो बाघ दी गई। मिट्टी के समान ही वे पानी को भी उपयोगी मानते थे । एक बार मोटर के दरवाजे मे उनकी दो अगुलिया मा गई। चोट इतनी कडी थी कि कुछ क्षणो को वे बेहोश हो गए। उन्होने तुरन्त पानी मे अगुलिया डाल दी, बहुत कहने पर भी टिंचर नही लगवाया। थोडी देर बाद पानी से अगुली निकालकर वे काम करने लगे। उन्हें शीतकाल मे सूर्य की खुली धूप में बैठना बहुत प्रिय था। जाडो मे वे दिन-भर धूप मे पडे रहते थे। उन्मुक्त वायु को वे बहुत महत्त्व देते थे। वे सदा खुली जगह में सोते-चाहे क्तिनी ही कडाके की सर्दी क्यो न हो । मालिश के समय दो-दो हीटर लगाने पडते थे, पर खिडकिया अवश्य खुली रहती थीं। कडाके की सर्दी