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जोड़ी बिछुड़ी 49
 


कष्ट होता था।

अन्त में 'बा' की आखें एकदम खुली और उन्होने बापू को बुलाया। जयसुखलाल माई पास आए, उन्होंने बापू से कहा, "'बा' बुलाती हैं।" बापू हसते-हसते आए और बोले, "क्यो 'बा' शायद तू सोचेगी कि सब रिश्तेदार आ गए, इसलिए मैंने तुझे छोड दिया। ले, यह मैं आया।" बापू ने 'बा' को गोद में ले लिया। बापू की ओर देखकर 'बा' कहने लगी, "मैं अब जाती है। हमने बहुत सुख भोगे, दुख भी भोगे। मेरे बाद रोना मत, मेरे मरने पर तो मिठाई खानी चाहिए।" यो कहते-कहते 'बा' के प्राण बापू की गोद मे ही निकल गए। बापू देख रहे थे। ज्यों ही प्राण निकले, बापू ने अपना सिर 'बा' की देह पर डाल दिया और उनकी आखो से आसुओ को धार बह चली। देवदास भाई 'बा' के पैर पकडकर 'बा-बा' पुकारने लगे। जयसुखलाल भाई ने बापू का चश्मा उतार लिया। बापू फौरन सभल गए। देवदास भाई को अपनी गोद में लेकर स्वस्थ किया। 'बा' के निकट 'रामधुन' शुरू हुई। फिर बापू, मनु, प्रभावती और सुशीला ने मिलकर 'बा' की मृत देह को स्नान कराया, शरीर पोछा, बापू के काते सूत की साडी मे 'बा' को लपेटा। माथे पर कुकुम लगाया, हाथ में और गले मे बापू का काता हुआ सूत पहनाया। जमीन लीपकर उसमे चौक पूरा और 'बा' को वहा सुलाया। 22 फरवरी को सायकाल ठीक 6 बजकर 35 मिनट पर उनकी आत्मा मुक्त हुई।