यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अतिथियो के प्रति 37 माद हर कोई अपनी-अपनी थाली उठाकर जाने लगा। उस महिला ने कभी बतन न मले थे। उनका भोजन हो चुका था, परतुवे घबरा रही थी कि क्या करे? इतने मे 'वा' भी खा चुकी। उन्होंने धीरे-से अतिथि महिला की थाली खीच ली। महिला घबराई और लजाई भी। भला कही वे अपनी जूठी थाली 'बा' से मजवा सकती थी? परन्तु 'बा' ने प्रेम से कहा, "नही बहिन, इसमे लजाने की क्या बात है? तुमने कभी थाली माजी नही, तुमसे नही बनेना।मुझे तो रोज़ की आदत है, मेरे लिए एक थाली भारी नहीं।"