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चोर गुरु सन् '26 की बात है। साबरमती आश्रम में एक बार 'बा' के कमरे मे चोरी हो गई। चोर कपडो से भरे दो बक्स चुरा ले गए। बापू को जब मालूम हुआ तो उहोने कहा, "लेकिन 'वा' के पास दो सन्दूक कपडे आए कहा से और किसलिए? 'बा' रोज-रोज़ नई साडिया तो पहनती भी नहीं।" 'बा' ने कहा, "रामी और मनु की मा तो मर गई हैं, पर कभी-कभार वे मेरे पास आए तो मुझे उनको दो कपडे तो देने चाहिए न? इसीसे भेंट मे मिली साडिया और खादी मैंने रख छोडी थी।" बापू ने कहा, "नही, निज भेंट में मिली कोई चोज केवल उसी हालत में अपने पास रखी जाए जब उसकी उसी समय जरूरत हो। बाकी सब चीजें तो आश्रम के कार्यालय मे जमा होनी चाहिए ।" उसी दिन शाम की प्रार्थना मे बापू ने इसकी चर्चा की और कहा, "हमको ऐसा व्यवहार नही जचता । लडकिया हमारे घर आए तो रहे, खाए, पीए, परन्तु जिहोंने गरीबी का जीवन बिताने का व्रत लिया है, उन्हे इस प्रकार की भेंट देना ठीक नही।" इन चोर गुरु से अपरिग्रह की यह नई दीक्षा लेने के बाद 'बा' का अपरिग्रह आदर्श हो गया। जब कभी बापू लम्बी और