बर्मा रोड द्वितीय महायुद्ध में अद्भुत कारनामे किए गए ! उसीमें बर्मा रोड का निर्माण भी एक अदम्य साहस और लगन की कहानी है । लेखक ने उसीकी एक झाकी इसमें प्रकट की है। सिंगापुर का पतन हो चुका था और बर्मा पर जापानी फौजें छा गई थी। अग्रेज़ हिन्दुस्तानी सेना को जापानियो के मुह में डाल बर्मा से भाग खड़े हुए थे। जापा- नियों ने हिन्दुस्तानी सिपाहियो को कैद न कर कूटनीति का परिचय दिया था। उन्होने उनकी प्रथम आजाद सेना जनरल मोहनसिंह की कमान में खड़ी कर दी थी। उसकी योजना यह थी कि अब भारत के मुख पर जो विकट युद्ध होनेवाला था, उसमे इन हिन्दुस्तानियो को देशभक्ति का जुनून चढ़ाकर झोक दिया जाए- और पीछे से मारकर भारत पर जापान का सूर्यमुखी झण्डा फहरा दिया जाए। इम्फाल के विकट वन, दुर्गम घाटिया और दुर्दम्य नद युद्धस्थलियां बने हुए थे- इसी स्थान पर यूरोप और एशिया के भाग्यो के फैसले होने वाले थे । अग्रेज़ और अमेरिकन सेनाओ के दल-बादल आसाम पर छाए हुए थे। अनगिनत युद्ध-सामग्री मनीपुर के नाको पर एकत्रित थी। तोपो की गड़गड़ाहट, बमों की धुआधार और मशीनगनो की मार से वन-पर्वत कम्पायमान हो रहे थे। भारत-बर्मा राजपथ बनना अत्यन्त आवश्यक था। बिना ऐसा हुए बर्मा का उद्धार तथा भारत का बचाव सम्भव न था । अंग्रेजो की जो सेनाएं इन जगलो में छिपी थी, वे बेसरो-सामान जापानियो का शिकार हो रही थी। यह एंग्लो- अमेरिकन सैनिक-समूह के जीवन-मरण का प्रश्न था । विश्व की राजनीति केवल भारत-बर्मा रोड पर आ अटकी थी। फील्डमार्शल जनरल..'ने लेफ्टिनेंट जनरल वुड को इस फ्रण्ट पर तैनात करते हुए हुक्म दिया था कि प्रत्येक मूल्य पर भारत-बर्मा रोड तैयार होनी ही चाहिएं । लेफ्टिनेंट जनरल वुड ने इस कठिन अभियान को स्वीकार किया था। पर यहा १६
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