अबुलफज़ल-वध अबुल फजल-वध एक प्रसिद्ध कहानी है | आचार्यजी ने मुगलकाल के इतिहास की एक घटना को बहुत कुशलता से कहानी रूप में पेश किया है । सलीम को शराबी, निकम्मा और गुनहगार बताकर अबुलफजल ने अकबर के कान भरे थे। अन्त में वीरसिहदेव ने उसका सिर काटकर सलीम के लिए सम्राट बनने का मार्ग खोल दिया || बैरोन के दुर्ग के पच्छिम भाग में एक भग्न शिवमन्दिर के भीतर तीन व्यक्ति बैठे किसी गुरुतर विषय पर परामर्श कर रहे थे। मौसम बहुत खराब था। दिन-भर वर्षा हुई थी। अब भी बूदें गिर जाती थी। काके की सरदी थी और रात्रि अत्यत अधकारमयी थी। हवा ज़ोर से चलकर पहाड़ से टकराती थी और उसका भया- नक गर्जन दिल को दहला देता था। तीन व्यक्तियो में एक तेजस्वी पुरुष था। उसकी महुमूल्य वेश-भूषा, पगड़ी पर हीरे का तुर्रा और कंठ में अगूर के बराबर बड़े-बड़े मोतियों की माला तथा ज़री के कमरपेटे में जवाहरात से जड़ी हुई मूठ की पेशकब्ज़ उस व्यक्ति के उच्च पद को उसकी तीखी, चीते के समान चितवन, सहज गंभीर स्वर, रोबदार मुख उसके प्रकृत वीरत्व को स्पष्ट कर रहा था। वह व्यक्ति बुदेलखंड के स्वर्गीय महाराज मत्करशाह के सातवें पुत्र, बैरोन के ठिकानेदार राजा वीरसिंहजी थे, जिनकी वीरता ने बुदेलखंड में आनन्द, श्रद्धा और प्रतापी मुगल साम्राज्य मे आतंक जमा दिया था, और जिन्होने बाहुबल से हाल ही मे मुगल फौजदार से भंडेर और ईरिच के इलाके छीनकर कब्जा कर लिया था। दूसरा व्यक्ति, जो उनकी दाहिनी ओर वीरभाव से बैठा था, एक ३५ वर्ष की आयु का मुसलमान व्यक्ति था। इसकी छोटी-छोटी, धनी, काली मूछे और छटी हुई दाढ़ी के बीच सुन्दर, अतिगौर मुख और उसपर बड़ी-बड़ी, किन्तु लाल डोरो से सयुक्त स्थिर आखें देखनेवालो पर बिना प्रभाव डाले नही रहती थीं।
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