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बावचिन बढते और जो मिलता उसे संगीनो से छेदते चले आ रहे थे । कर्नल वाट्सन के हाथ मे कमान थी। इनके साथ थे एक सम्भ्रान्त मुसलमान अमीर जनाब इलाहीबख्श । वे एक अरबी नफीस घोडे पर पान चबाते, इतराते बढ रहे थे, लोग देख-देखकर भयभीत होकर घर मे छिप रहे थे। यह इलाहीबख्श वही घायल युवक थे, जो अपनी जवामर्दी और चतुराई से दस वर्ष मे बादशाह के अमीर और नगर के प्रतिष्ठित तथा प्रभावशाली व्यक्ति बन गए थे । अग्रेजो ने दमदार मुगलो को जहा तोपों और संगीनों की नोक से वश मे किया था, वहा कुछ नमकहराम, सगदिल लोगो को अपनी भेद-नीति और सोने के टुकड़ो से वश में कर लिया था। इलाहीबख्श भी उनमे से एक थे। दस वर्ष पहले शाहजादी के कदमों पर गिरकर नमकहलाली की जो बात उन्होंने कही थी, वह अब उन्होने दरगुज़र कर दी थी। वे अब अंग्रेजो के भेदिये थे। दोनो व्यक्ति सराय के सामने जाकर ठहर गए। हौज के पास, जहां अब घण्टाघर है, बराबर-बराबर फांसियां गड़ी थी और क्षण-क्षण मे चारों तरफ गली- कूचों से आदमी पकड़े जाकर फासी पर चढ़ाए जा रहे थे। कुछ खास कैदी इनकी प्रतीक्षा मे बंधे बैठे थे। हडसन साहब ने सबको खड़ा होने का हुक्म दिया। इलाही- बख्श ने उनमें से मुगल सरदारों और राजपरिवारवालो की शिनाख्त की;वे सब फांसी पर लटका दिए गए। इसके बाद, बादशाह किले से भाग गए है, यह सुनकर एक फौज की टुकड़ी लेकर दोनो तीर की तरह रवाना हुए। बादशाह सलामत जल्दी-जल्दी नमाज पढ़ रहे थे। उनके हाथ कांप रहे थे और आखो से आसुओ की धारा बह रही थी। शाहजादी गुलबानू ने आकरकहा- बाबाजान ! यह आप क्या कर रहे हैं ? "बेटी अब और कर ही क्या सकता हूं? खुदा से दुआ मांगता हूं,कहता हूं- ऐ दुनिया के मालिक ! मेरी मुश्किल आसान कर। यह तख्त, तैमूर के खून का तख्त तो आज गया ही, मेरे बच्चों की जान और आबरू पर रहम बख्श!" गुलबानू ने कहा-बाबा ! दुश्मन किले तक पहुच चुके है। आपके लिए सवारी तैयार है, भागिए ! बादशाह ने अधे की तरह शाहज़ादी का हाथ पकड़कर कहा-भागू कहां? हाय ! वह घड़ी अब आ ही गई !