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धवाश्रम २५६ ह नकदी, जेवर और कागजात मिले। इन्हे लड़कियो.ने शिनाख्त से अपना बताया ८ . इसके बाद और भी दो-तीन गवाही लेकर मैजिस्ट्रेट ने कहा-अच्छा, अभि- उक्त क्या कहना चाहते हैं ? डाक्टर ने बयान दिया: "हुजूर, मैं पुराना आर्यसमाजी हू । सब लोग मुझे जानते है। मैं कभी झूठ जही बोलता। नित्य सन्ध्या-हवन करता हू । ये लड़किया और गवाह झूठे है विधवाश्रम बड़ी पवित्र सस्था है। स्त्रियो का उद्धार करना उसका उद्देश्य है। ये देखिए, छपे हुए सर्टिफिकेट है, जो बड़े-बड़े लोगो ने दिए है। मै सबको धर्मपुत्री- समझता हू। विवाह उनकी राजी पर ही होते है। गहने-कपडे मैं सब देने को तैयार है। मेरा उद्देश्य अधर्म का नही, धर्म का है ! धर्म की जय होती है ! यही ऋपि जनन्द का मिशन है ।" ज गजपति ने कहा-मैं इस मामले मे कुछ नही जानता, सिर्फ क्लर्की करता -अन्य अभियुक्तो ने भी इन्कार कर दिया।

  1. मैजिस्ट्रेट ने फैसला लिखा :

"इस मुकदमे के सम्बन्ध मे मेरी मुख्तसिर राय है कि ऐसे ही पाखण्डियो से मच्चे धर्म का अनिष्ट होता है । धर्म चाहे सनातन हो, चाहे आर्यसमाजी, या कोई समाजी-यदि उसमे सरलता, सत्यता और श्रद्धा तथा विश्वास है, तो वह सनीय है। मै यह जानता हूं कि प्रत्येक मत में कुछ सच्ची लगन के सत्यवक्ता -धर्मिष्ठ आदमी है, जो वास्तव मे प्रशसा के योग्य है। इसके सिवा सभी सम्प्र- मे कुछ पाखण्डी लोग भी होते है, जो भीतर कुछ और बाहर कुछ और होते र अभियुक्तो जैसे पेशेवर अपराधियो की श्रेणी तो पृथक् ही है। ये न केवल र अपराधी ही हैं, प्रत्युत उसे किसी समाज' या धार्मिक सस्था की आड़ मे - पाकर, उस सस्था का गौरव भी नष्ट करते है। निस्सन्देह समाज के लिए ऐसे दमी कलकरूप हैं। यह बात सच है कि हिन्दू-समाज मे स्त्रियो की दुर्दशा का अन्त नही है गैर वे चारो तरफ से प्रताडित होकर असहाय हो जाती हैं। उनकी सहायता के लए ऐसे आश्रमो की स्थापना एक उच्चकोटि के अस्पताल से कम पवित्र सस्था । मै यह भी स्वीकार करता हूं कि ऐसी संस्थाओं का सम्पर्क बहुधा भयानक,