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बाहर-भीतर २३० पर आ पहुंचा। पहली मुलाकात थी, इससे मेरा कलेजा धड़क रहा था; लेकिन खुशी मे मेरे रक्त की एक-एक बूद नाच रही थी। दिन इन्तजारी और इधर-इधर की खट-खट मे बीता, रात को ज्यो ही वह मेरे कमरे मे आई, उसे देखते ही मेरी आखें जल उठी। क्यों ? सो कहता हू, सुनिए। मैंने सोचा था, वह धीरे से ज्यो ही मेरे कमरे मे आएगी लेवेंडर और सेंटो की लपटो से कमरा महक उठेगा। उसकी रूप- ज्योति से मेरे कमरे मे चांदनी हो जाएगी। जैसे मेरे क्लास मे मेरी सुघड,सुन्दरी सहपाठिनियो के आने से हो जाता था। वह उन्हीकी तरह छिप-छिपकर, नयनबाण चला-चलाकर मेरे सोए हुए हृदय को जगाएगी, और उन्हीकी तरह मन्द मुस्कान से मेरे मन को सुख-सागर में डुबोएगी। वह आकर धीरे-धीरे लाज से नीचा मुह कर मेरे पास खड़ी हो जाएगी। इसके बाद क्या करना होगा, सो क्या मैं जानता नही ? अनाड़ी नहीं हूं, मैंने सव सोच रखा है । मैं उसे खीचकर पास बिठा लूगा, घूघट दूर करूगा, और उस चाद-से मुख को चूम लूगा । बार-बार चूमूगा । इतने ही से मेरा जीवन सफल हो जाएगा। जिस दिन की याद मे मैने दुनिया की सुन्दरियो को हेच समझा था, वह समय आज आ गया। अहा ! मै कितना भाग्यवान् हू उसके सदुपयोग के सब साधन मै जुटाए बैठा हू । भाभी ने बहुत-सी मिठाई, फूल- मालाए, इत्र, सेट और न जाने क्या-क्या मेरे पास रख दिए थे। फिर मै भी तो ऊषा के लिए बहुत-से उपहार लाया था। वे सब मेरे पास थे। इन सबका किस तरह उपयोग करना होगा, यह सब मैंने सोच रखा था। हा, तो मैं कह रहा था कि वह ज्यो ही मेरे निकट आएगी, उसका घूघट हटा, लज्जावनत मुख उठाकर मधुर चुबन लूगा । ओह, पति का प्रथम चुबन नववधू के लिए कैमा अमिट स्नेह-चिह्न होगा! वह फिर धीरे-धीरे मेरे पास आएगी, मैं उसे अकगत करूगा, मीठी बातो से सकोच दूर करूंगा, उसे प्रेम मे डुबो दूगा; वह मेरे चरणों को चूमेगी, मुझे पाकर धन्य होगी, चिरवियोग के लिए रोएगी। अरे, वह साक्षात् कालिदास की शकुतला की भाति प्रेम-विह्वला होगी। उस दिन मै शकुन्तला को कई बार पढ़ गया। पर जब वह आई तो मैंने अपनी आशा के बिल्कुल उल्टा पाया । लेवेडर और सेट का नाम न था। वह एक साधारण, किन्तु उज्ज्वल साडी पहने थी। पैर मे