यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कन्यादान २२७ नहीं है, कभी सुशीला को देख जाया कीजिए। विधवा अभागिनी आपको देखकर प्रसन्न होगी। डाक्टर टप-टप आसू गिराने लगे। उन्होने बालिका को चुपचाप गोद से उतार दिया। उधर से एक खोचेवाला आ रहा था, उसे पुकारकर बालिका को कुछ दिलवाने लगे। काता का भी गला रुध गया था। वह बोल ही न सकी। डाक्टर ने कहा-जाता "सुशीला बेटी, डाक्टर साहब को कब बुलाएगी?" "कल आप आएगे डाक्टर साहब ? मै तुम्हें अपनी एक चीज़ दिखाऊगी।" डाक्टर ने फिर उसे उठाकर छाती से लगाया, प्यार किया, और तेजी से चल दिए। कांता खडी देखती रही। क्या वह रो रही थी? ।