यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२ लालारुख "क्या वह बुखारे का बाशिंदा है ?" "नही हुजूर, वह कश्मीर का रहनेवाला है। वह एक कमसिन खूबसूरत और निहायत बाअदब नौजवान है।" शाहजादी ने एक बार दारोगा की तरफ देखा, और पूछा-क्या कह सकते हो कि शाहजादे के साथ उसके किस तरह के ताल्लुकात है ? "जी हा, तहकीकात से मालूम हुआ कि हजरत शाहजादे के साथ इस नौजवान के बिलकुल दोस्ताना ताल्लुकात हैं।" "क्या शाहजादे ने कुछ ताकीद भी लिख भेजी है ?" “जी हां हुजूर, उन्होने लिखा है कि मैं अपने जिगरी दोस्त इब्राहीम को शाह- जादी का इस्तकबाल करने और उन्हें गाने तथा कविता से खुश करने को भेजता है। शाहजादी को उनसे पर्दा करने की ज़रूरत नहीं।" शाहजादी नीची नजर करके मुस्कराई, और धीमे स्वर से कहा--बहुत खूब, शाहजादे के दोस्त का हर तरह आराम से रहने का इन्तजाम कर दो। इतना कहकर वह जल्दी से ख्वाबगाह में चली गई और ख्वाजा सरा कोनिश करके बाहर आया। कही बदली छा रही थी। कश्मीर की घाटियो में लालारुख की छावनी पड़ी थी। चारों तरफ सुहावने दृश्य थे। दूर पर्वत-श्रेणियां शोभा बखेर रही थीं। चांदनी छिटकी थी, और वह बदली में छन-छनकर धरती पर बिखर रही थी। लालारुख ने सुना, कोई वीणा के मधुर झंकार के साथ वीणा-विनिदित स्वर में मस्ताना गीत गा रहा है । उस प्रशान्त रात्रि मे इस सुमधुर गायन और उसके प्रेमभावनापूर्ण शब्दों से लालारुख प्रभावित हो गई। उसने प्रधान दासी को बुलाकर कहा-कौन गा रहा है? "वही कश्मीरी कवि है।" "बड़ा प्यारा गीत है !" "और वह गायक उससे भी ज्यादा प्यारा है ! "क्या वह बहुत खूबसूरत है ?" "मगर हुजूर के तलुओ योग्य भी नहीं।" लालारुख मुस्कराई। उसने कहा-किसीको भेजकर उसे कहला दो, जरा नजदीक आकर गाए। .