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२१२ कन्यादान भी लिखा। विवाह जाति-पाति को तोड़कर होगा, यह भी लिख दिया। सब छपा दिया। एक ही चीज़ छपने से रह गई। वह था कन्या का चित्र । पर यह पंक्ति नीचे बढ़ा दी गई कि योग्य वरो के पास कन्या का चित्र भेज दिया जायगा, और अन्तिम निर्णय तो वर-कन्या स्वयं मिलकर ही करेंगे। अब आप कहिए पाठक, योग्य वर कौन है । खास कर उस हालत में, जबकि जाति-पांति की कैद नही । अजी,ठेकेदार साहब की जाति क्या है, इससे आपको कोई वास्ता नहीं । जो चीज़ तोड़ दी गई उसकी बात ही क्या? अलबत्ता, अगर आप भंगी-चमार, धुनिए-जुलाहे या ऐसी ही सटर-पटर जाति के है, और आप विद्या और गुणों को प्राप्त करके ही उम्मीदवार बनकर जीभ चटकाने लगे, तो हम साफ कहेगे कि यह आपका दुस्साहस है। आपकी अक्ल यदि बिल्कुल ही मोटी धार की नही, तो आपको समझ लेना चाहिए कि आर्यसमाज के प्रधान यदि जाति-पांति तोड़ेंगे, तो नीचे गिरने के लिए नहीं, बल्कि ऊचे उठने के लिए। अभिप्राय यह कि वर ब्राह्मण होना चाहिए, और उसे ठेकेदार साहब की जाति-पांति की परवाह न कर उनकी 'पडिता' कन्या को ब्याह लेना चाहिए। हा जी, 'पडिता'; आप चौके क्यो ? कन्या ने विद्याविनोदिनी पास कर लिया है, और सन्ध्या-हवन के मन्त्र उसकी जीभ के अगले भाग पर धरे रहते हैं। इच्छा होते ही वे फर-फर निकल पड़ते हैं । अलबत्ता, वर को 'ब्राह्मण-वंश' का होने के साथ धनी, विद्वान्, सुन्दर और ठेकेदार साहब का भक्त होना भी लाजिमी है। अब कहिए, हैं आपमें ये गुण नही, तो आप अपना रास्ता नापिए । पंडिता जी से आप विवाह नही कर सकते। " ? प्रधान जी और देशराज जी बैठे बाते कर रहे थे। प्रधान जी ने कहा-देखो देशराज जी, तुमने कन्या का रूप तो देखा ही है, गुण में भी वह किसीसे कम नहीं। उसने विद्याविनोदिनी पास कर लिया है। वह नित्य सन्ध्या-हवन करती है, यह तो तुमने देखा ही है ? "जी हां, देखा है।" "देखने में भी बुरी नहीं।" "जी नहीं," देशराज ने झंपकर कहा। "अच्छा, अब तुमने डाक्टरी पास कर ही ली। यही काम शुरू कर दो। खूब चलेगी।"