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कन्यादान २०६ . "नही, बिल्कुल नहीं।" "मै आहके हाथ जोड़ती हूं, आप इधर न आया करें। न हो, लिखकर खत डाक में डाल दिया करें।" "मगर दोनो ही इल्लतों से तुम्हारा पिण्ड छूट जाए, तो कैसा?" "वह किस तरह ?" "उस बात का जवाब दे दो।" बालिका लजाकर हस पड़ी। वह फिर धरती की तरफ देखने लगी। युवक ने कहा-बस यही तो बात है । देखो, आज मैं कब तक यहा खड़ा रहता हू। "अब मुझे क्लास में जाना है, जाने दीजिए।" "बिना जवाब दिए तो जाने न पाओगी, आज मैं हाथापाई भीकर डालूगा।" "ईश्वर के लिए बेवकूफी न करो।" "बेवकूफी का कोई समझदार बुरा नहीं मानता, तुम भी न मानोगी।" "अब मुझे जाने दो।" "जवाब दे जाओ।" "किस बात का?" "उसी बात का।" "मैं क्या जवाब दे सकती हू ? पिताजी को लिखिए।" "मै तुम्हारा जवाब चाहता हूं। पिता जी से मैं निबट लूगा।" "मैं कुछ नही कहती, अब मुझे जाने दीजिए।" "मैं भी कुछ नही सुनता, हरगिज़ न जाने पाओगी।" "बालिका ने रिस भरे नयनो से एक बार युवक को देखा, और हस दी । युवक ने कहा-लो, अब मैं तुम्हे छूता हूं। "ना-ना, ईश्वर के लिए।" "तब बताओ।" "अच्छा पूछो।" "बस, बता दो।" "कुछ पूछो भी !" "क्या तुम मेरी होगी?' युवती चुप हो गई। उसके गाल लाल हो आए, वह कापने लगी। उसने बोलना