१७४ नवाब ननकू - राजेश्वरी, गजा साहब की तन्दुरुस्ती और बरकत के लिए। तीनो ने हंसती हुई आखें मिलाई और शराब की चुस्किया लेने लगे। राजेश्वरी ने कहा-इस सरदी में बहुत दौड-धूप की, नवाब साहब ! "मान गई न आप नवाब को, लीजिए इसी बात पर दूसरा पैग।" "नही नवाब, मैं तो कभी पीती ही नही । बहुत मुद्दत हुई, जब से महाराज की तबियत नासाज रहने लगी। आज मुद्दत बाद मुह से लगा रही है।" "तो पूरी कसर निकालिए राजेश्वरी भाभी, नवाब को इस ठडी रात मे उस माले ठेकेदार से बहुत मगजपच्ची करनी पड़ी। साला वही रद्दी माल पटील रहा था। मैंने कहा : वह बोतल निकाल जो उस दिन हमारे सरकार की खिदमत में गई थी। और ये कवाब, सच कहता हू राजेश्वरी भाभी, कस्बे मे दूसरा नही बना सकता।" "वाकई बहुत अच्छे बने हैं, मगर आप तो खाते ही नही नवाब साहब।" "वाह, खिलाने मे जो मज़ा है, वह खाने में कहां? देखा था अम्मी को, यही एकशौक उन्हे मरते दम तक रहा-एक से एक बढकर चीजें बनानाऔर खिलाना।" "मुझे याद है नवाब, मैं तब बहुत बच्ची थी, आपा के साथ आती थी, वे छोड़ती ही न थी-खीच ले जाती थी। कितना खिलाती थी; क्या कहूं।" "मगर अब अम्मी तो हैं नही, नवाब उनका नालायक लड़का है, उसने विरा- सत में अम्मी की वह आदत पाई है। लीजिए, यह पैग तो पीना होगा।" "मगर उधर तो देखो नवाब, महाराज ने सिर्फ होठो को छूकर ही गिलास रख दिया है, पी कहा?" "क्या कहूं राजेश्वरी, तकलीफ देती है, पी नही सकता । डाक्टरों ने भी मना कर दिया है। मगर तुम पियो राजेश्वरी, आज मैं बहुत खुश हूं। लाओ नवाब, राजेश्वरी को एक पेग मै भरकर दू।" "और हुजूर, एक नवाब को भी।" "अरे, यह कब से ? तुम तो कभी पीते नही थे।" "आज ही से, अभी-अभी एक पैग पिया है मैंने।" राजा साहब ने दो पैग भरकर तैयार किए। गिलास में भरकर कहा-लो राजेश्वरी, और तुम भी नवाब । "वाह हुजूर, यो नही, जरा-सा जूठा कर दीजिए कि यह जाम पाक तबरुक हो
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