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कहानीकार का वक्तव्य - किया जाए। जैसाकि मै कह चुका हूं, अपना कथा-साहित्य अपने पाठकों के लिए लिखता हू। उन्हे पेशेवर समालोचक से अधिक विज्ञ और सहृदय समझता हू। मेरा कथा- साहित्य युग के साथ अपने उद्देश्यों की दिशाएं बदलता चला जा रहा है। उसका सबसे बड़ा उद्देश्य आधुनिकता का प्रतिनिधित्व करता रहा है। मुझे प्रसन्नता है कि अब तक बिखरी हुई मेरी कहानियो की पहली किस्त हिन्दी प्रतिनिधि प्रकाशक सर्वश्री राजपाल एण्ड सन्ज आपके सम्मुख उपस्थित कर रहे है, जिसमें कुछ चुनी हुई कहानियां है । साथ ही आपके सम्मुख अगली किस्तें भी आएंगी। ज्ञानधाम-प्रतिष्ठान २६ जनवरी, १९५६ --चतुरसेन