नवाब ननकू, 'नवाब ननकू' एक भावकथा है, जिसमें चरित्र और प्राचार का मनो- वैज्ञानिक विश्लेषण है | कहानी में कुल तीन मुख्य पात्र है । राजा साइब, एक शराबी-कवावी-वेश्यागामी-लम्पट रईस, जिन्होंने इसी काम में अपनी सारी सम्पत्ति फूक दी और अब दारिद्रय और रोग का भोग भोग रहे है | दूसरी है एक विगलितयौवना वेश्या, और तीसरे है एक रईस के औरस से उत्पन्न वेश्यापुत्र, जो अपने को नवाब समझते है | कहानी में तीनों दोस्तो की एक मुलाकात का रेखाचित्र है । मुलाकात में जीवन के आगे-पीछे के समूचे जीवन की स्पष्ट झाकी अंकित करने में लेखक ने अपनी अपरिसीम कथा-निर्माण कला का परिचय दिया है | इससे भी अधिक अपनी उस विश्लेषण-सामर्थ्य को मूर्त किया है-जब कि वह चरित्र को प्राचार से पृथक् मानता है | तीनों ही पात्र हीन चरित्र हैं । परन्तु उनके हृदय की विशालता, विचारों की महत्ता, भावों की पवित्रता ऐसी व्यक्त हुई है कि बड़े से बड़ा सदाचारी भी उसकी समता नहो कर सकता। पूरी कहानी पढकर तीनों में से किसी पात्र के प्रति मन में विराग और घृणा नहीं होती, आत्मीयता और सहानुभूति के भाव पैदा होते हैं | आचारहीन व्यक्ति भी उच्च चरित्र वाले होते हैं। तथा प्राचार और चरित्र में मौलिक अन्तर क्या है-यह गम्भीर मनोवैज्ञानिक और आचारशास्त्र-सम्बन्धी नया दृष्टि- कोण लेखक ने कहानी में व्यक्त किया है। सरदी के दिन और सनीचर की रात, कल इतवार । न दफ्तर जाने की फिक्र न किसी काम की चिन्ता । बस, बेफिक्री से खाना खाकर जोरजाई में घुसे तो अम्बरी तमाखू का कश खींचते-खीचते ही अण्टागफील हो गए। मगर उस मीठी नीद में शुरू मे ही विघ्न पड़ गया। नीचे कोई कर्कश स्वर में चिल्ला रहा था-बाबू साहब, अजी बाबू साहब ! उस वक्त आराम में यों खलल पड़ने से तबियत झल्ला उठी। क्या मजे की झपकी आई थीं ! मैंने उठकर खिड़की से सिर निकालकर कहा-कौन है भई इस वक्त ?
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