रूठी रानी १४१ को टालिए । वह किले का अधिकार लेगी तो हम उसकी दबैल होकर रहेगी ?" "क्या करू, मेरा भतीजा ईश्वरदास उसे ला रहा है, वह कपूत तो मेरे कहे मे नहीं।" "भट्टानी यहान आने पाए।" "न कैसे आने पाए, सवारी तो चल चुकी, कल-परसों जोधपुर आ ही पहुचती "उसे राह ही मे रोक दो, हम आपको खुश करेगी।" "जाकर देखता हू, सवारी कोसाना तक आ चुकी है।" "जाओ और उसे रोको।" . "रूठी रानी की सवारी आ रही थी, आगे निशान का हाथी था। सवारी का ताता बधा था,हाथी के पीछे नौबतखानाथा, उसके पीछे घोडों पर नक्कारा बजता था जिसकी आवाज़ बारह कोस से सुनाई देती थी। पीछे सजे हुए ऊंट और चीलों का झडा हवा में उड़ता दिखाई देता था। झण्डे के पीछे रणबका बरछत राठौरो का एक रिसाला था, फिर एक कतार बन्दूकचियो की, उनके पीछे तीरन्दाज, फिर ढाल-तलवारवाले राजपूत थे, आगे कुछ दूर मैदान खाली रखकर कोतल हाथी और घोडे चलते थे, उनके पीछे नकीब, चोबदार, सोने-चांदी के आसे लिए हुए प्रबन्ध करते चलते थे। वारहट ईश्वरदास भी पांचों हथियार लगाए एक चालक घोडे पर अकड़े बैठे थे। आसाजी को देख ईश्वरदास ने घोड़े से उतर मुजरा किया, दोनो खड़े हो सवारी देखने लगे । सवारी बढ रही थी। एक झुंड सजी और कसी कसाई पालकियो का आया। उनमे कुछ के पास तीर- कमान और तलवारें थी। उन्हीके झुरमुट मे रानी का सुनहला सुखपाल था। उसपर गुलाबी पर्दा पड़ा था, पर्दे पर जगह-जगह चमकीले नग जडे थे, जिसपर निगाह नही ठहरती थी। सुखपाल के पीछे नगी तलवारो का पहरा था। इसके बाद जनानी सवारिया पालकियो, पीनसो और रथो मे थी। उनके पीछे राठौरो का एक रिसाला था और रिसाले के पीछे जुलूस के बाकी कोतल घोड़े, हाथी और ऊट थे। सबके पीछे फर्राशखाना, तोपखाना और मोदी आदि लाव-लश्कर की ऊटगाड़ियां थी।
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