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१४० रूठी रानी खडी कराकर चौकी-पहरे का प्रबध करा दीजिए। जब उसका मिजाज ठंडा हो जाए तो समझा-बुझाकर जोधपुर ले आइए।" "जो आज्ञा महाराज।" "बाई से अर्ज करो, दीवान हाज़िर है।" "दीवानजी क्या चाहते है ?" "रावजी के हुक्म से यह रामसर का परगना बाईजी राज के नाम लिखा है, सो हाज़िर है।" "उसका प्रबन्ध हमारी तरफ से तुम स्वयं करो।" "जैसी मर्जी।" "ड्योढी पर किलेदार ने तम्बू-परदे का सब प्रबन्ध कर दिया है, वह सुबह- शाम स्वय हाज़िर होगा।" "उसे इस चाकरी का सिरोपाव दिया जाए।" "जो हुक्म, अजमेर का हाकिम मुजरा करता है।" "वह क्या कहता है ?" "बाईजी राज, रावजी ने बीकानेर जीत लिया है। पर शेरशाह हुमायू को भगाकर आगरे आ पहुचा है। बीकानेर के राजा-रईस सब उससे मिलकर उसे रावजी पर चढाने को ला रहे है। रावजी अस्सी हजार सेना ले उससे मोरचा लेने आ रहे है, सो किले पर जंगी बन्दोबस्त जारी करने का हुक्म हुआ है। आपके लिए जोधपुर पधारने की मर्जी हुई है।" "मुझे क्या भय है ! मैं राजपूत की बेटी हू, विपत आई तो जलकर नही मरूगी, मर्द की तरह लड़गी। रावजी को लिख दो, किला मेरे भरोसे छोड़ दें और बाकी राज्य का प्रबन्ध स्वय कर ले।" "बाईजी राज, ऐसी ही मर्जी है तो जोधपुर का किला आप अधिकार में कर ले, यहा तो भारी मोर्चे की जोखिम है।" "अच्छा, अजमेर न सही, जोधपुर ही सही, सवारी का प्रबन्ध कर दो। यह मौका न आ जाता, तो मै यहां से जाना नहीं चाहती थी।" - "वारहटजी, यह क्या बात है, सौत हमारी छाती पर आ रही है ? इस बला