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रूठी रानी .. "बाईजी, मैं भी आप ही के घराने का हूं। इसीसे बाईजी-बाईजी करता हूं। ऐसा न होता तो देखती कि आपको और आपके घराने को कैसा लजाता। यह क्या बात है कि मैं तो मुजरा करता हू और आप जवाब ही नहीं देती ?" रानी चुप रही। "बाईजी, आपने अपने पूर्वज रावल दूदाजी का नाम सुना होगा। जब वे मुसलमानो से लड़कर काम आए, तब उनकी रानी ने चारण हुपाजी से कहा कि राजा का सिर ला दो, मै सती होऊंगी। पर जब हुपाजी रणक्षेत्र गए तो वहां कटे सिरों मे रावलजी का सिर मिलना मुश्किल हो गया। तब हुंपाजी ने उनकी प्रशसा करनी प्रारम्भ की, जिसे सुन सिर हंस पड़ा। सो तुम भी उसी वश की होः वह मरकर भी बोला और तुम जीती भी नही बोलती। क्या तुम्हारे बडोका रक्त तुम्हारे शरीर मे नही है ?" "बाबाजी, मैं देखना चाहती थी कि आपकी वाणी में कैसा प्रभाव है । कहिए क्या कहते है ? क्यो आए है ?" "धन्य बाई, तुम्हारा जन्म चन्द्रवश मे हुआ है, तुम्हारी सौते कहती है, कि तुम चाद को चीरकर निकाली गई हो, पर कुछ कलक है। वह क्या है, यही पूछने आया है।" "उन्हीसे पूछिए।" "वे तो स्पष्ट कुछ भी नहीं कहती, पर सुना है तुम रावजी से रूठी हो, इसीको वे कलक कहती है।" "यह तो उनके लिए सुख की बात है।" "तुम भी खूब हो बाईराज, सौतो को सुखी और पति को दुखी करती हो !" "रावजी को रानी-बांदी की पहचान नहीं।" "रानी रानी है, बांदी बांदी।" "इसके लिए आप वचन दे सकते हैं ?' "हां" "अच्छा हाथ बढ़ाइए।" ईश्वरदास ने रावजी का हाथ पर्दे में बढ़ा दिया। "आह !" यह तो वही कठोर हाथ है।" "तो और हाथ कहां से आए?"