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१२४ लाल पानी अदा किया । उसकी स्त्री ने कहा, "हमारे बच्चों का बलिदान सफल तो हुआ। बड़ी बात हुई।" फिर सभी बचे हुए मियाने एकत्र हुए और सलाह करने लगे। इस जुल्म का बदला कैसे लिया जाए। तब वृद्ध भिया ने कहा, "भाइयो, राजा से वैर का बदला राजा ही ले सकता है। हम तो रैयत है । बड़ी बात हुई कि हमारी आन रह गई। अब जैसे बने कुमारो को सही-सलामत यहा से रवाना करो।" सध्या का अन्धकार बढने पर भिया ने राजकुमारों को बाहर निकाला। दोनों राजकुमार अभी बालक ही थे, पर वे बहुत-कुछ अपनी विपत्ति और अपने जीवन- दाता के त्याग को समझ गए। उन्होने वृद्ध पटेल को अपना धर्म-पिता कहकर प्रणाम किया। पटेल और उसकी पत्नी ने दोनों राजकुमारो को छाती से लगाकर बहुत-बहुत आसू बहाए । छच्छरबूटा को टेकरी की गुफा से बुलाया गया। भिया मियाना पर जो बीती थी, उसे सुनकर उसने सिर धुन लिया। पर पटेल ने आसू पोछकर कहा, "सरदार, यह तो ससार का चक्र है। जो होना था, हुआ। चलो, अब राजकुमारो को सुरक्षित स्थान पर पहुचा दो।" मवारी का कोई प्रबन्ध नही हो सकता था। परन्तु विलम्ब करना भी घातक था । छच्छरबूटा ने युवराज खगारजी को कधे पर उठा लिया और पटेल ने दूसरे राजकुमार को । और दोनो धीर-वीर वृद्ध लाठी टेकते अन्धकार मे खो गए।