१२२ लाल पानी मैं तुझे भारी जागीरदार बना दूगा।" परन्तु पटेल ने स्थिर शान्त कंठ से कहा, "मै कुछ नहीं कह सकता और जीवन का मुझे कुछ भी मोह नही है ।" पटेल का यह उत्तर सुनकर जाम रावण ने सिंह के समान गर्जना की। और शिवजी को सम्बोधन करके कहा, "शिवजी भाई, तुम हमारे अत्यन्त विश्वासपात्र शुभचिन्तक हो। मैं तुम्हीको इन गजियों में से राजकुमारो को ढूढ़ निकालने का काम सौपता हू । सहायता के लिए आदमी ले लो और यत्ल से तलाश करो। तुम यदि राजकुमारो को खोज निकालने मे सफल हुए तो तुम्हारा मान-वैभव राज्य में अब से चौगुना हो जाएगा।" "जैसी महाराज की आज्ञा।" शिवजी ने नम्रता से कहा । - शिवजी लुहाणा एक वीर राजपूत था और उसके मन मे रावणसिंह के इस क्रूर कर्म से उसके प्रति तिरस्कार का भाव उग आया था। उसने कुछ सिपाहियो को आज्ञा दी कि वे घास की गजियो को चूथ-चूथकर राजकुमारों की खोज करें। परन्तु एक बूढे सिपाही ने कहा, “महाराज, इस प्रकार तो खोज-जांच में कई दिन लग जाएगे। गजियो को चारो ओर से भालों से छेदा जाए। यदि गंजी में राजकुमार छिपे होगे तो भाले की अणी उनके अगो में छिद जाएगी और जब लहू से भरी अणी बाहर निकलेगी हो उन्हे कैद कर लिया जाएगा।" शिवजी ने कहा, "अच्छा, तो ऐसा ही करो।" यद्यपि उसने सिपाही के इस प्रस्ताव का अनुमोदन कर लिया था, परन्तु उसका धर्मभीरु मन यह चाह रहा था कि राजकुमारो का पता न चले तो ही अच्छा है । उसके मन में यह भी भावना दृढ़ हो रही थी कि कदाचित् राजकुमार मिल भी गए तो उन्हें बचाने के लिए आवश्यकता होगी तो वह रावण का सामना करेगा। ज्योंही सिपाहियों ने गजी में भाले भोकने आरम्भ किए, भिया मियाना की आंखो का तेज बुझ गया और उसकी आंखो से 'गगा-जमुना की धार बह चली। उसकी स्त्री भी आचल में मुंह छिपाकर रोने लगी। पर अब तो और कोई उपाय ही न था। सब मिलाकर सत्रह गंजियां थी। सिपाही उनमें चारो ओर से भाले छेद- छेदकर देखने लगे । सोलह गजियां देख ली गई, तब वे बीच की गंजी के निकट
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