११२ लाल पानी सेवक ने इस कठिन समय मे भी अपने मस्तिष्क का सतुलन नही खोया। वह वही धरती मे चुपचाप लेट गया और देखता रहा । झपाक से रावणसिह वहां आ पहुचा । जल्लादो के सरदार का नाम था चामुण्डराय । वह रावण का सेनापति था। रावण ने मोतियो की कीमती माला उसके गले मे डाल दी और कहा, "शाबाश बहादुर, तूने बड़ा काम किया। अब चढ़ी सवारी दौड़ जा, साप मर गया, पर साप के बच्चे अभी जिन्दा है। हम्मीर के दोनो राजकुमार पिजोड़ मे अजाजी के घर पर है, अभी मारते घोड़े जा और दोनो कुमारो को अपने बाप की सेवा करने के लिए यमलोक में भेज आ और समझ कि यह काम कर चुकने के साथ हीतेरे भाग्य का उदय हुआ।" चामुण्डराय ने यह सुनते ही अपने जल्लादो को हाक लगाई। वे सब चढी सवारी, खून से भरी हुई तलवारें हवा मे हिलाते हुए पिजोड़ गाव की तरफ दौड़ चले।
छच्छरबूटा ने सब सुना । सब देखा। उस अन्धकार मे वे स्वार्थान्ध खूनी उसे नही देख पाए । वह कीडे की भाति रेगकर द्रुत गति से एक ओर को चल दिया तथा एकान्त होने पर उठकर उस स्थान की ओर दौड चला जहा उसने अपनी साड़नी जगल मे छुपाई हुई थी। वह साड़नी अत्यन्त द्रुतगामिनी थी। वह एक घड़ी मे चार गाव का रास्ता पार करती थी। बूटा साड़नी पर सवार हुआ और सांड़नी हवा मे तैरने लगी। उसे उन जल्लादो की नज़र से भी अपने को बचाना था और पिंजोंड़ भी उनसे पहले पहुचना था। वह खेतों और नालो मे से रास्ता काटकर हत्यारो से पहले सही सलामत पिजोड़ जा पहुचा। अब तक तीन पहर रात बीत चुकी थी। वह गाव की सूनी गलियों को पार कर सीधा अजाजी के महल के द्वार पर जा पहुचा। सूचना पाते ही अजाजी की रानी घबराकर जाग उठी। उसने तत्काल छच्छर को बुलाकर कुशल पूछी। छच्छर ने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा,“रानी मा, कुशल कैसी! महाराज तो उस पापी रावण के हाथ मारे गए, अब कुमारो का घात करने कुछ पल में हत्यारे यहा पहुच रहे हैं। आप अभी कुमारों को मेरे हवाले कीजिए । मेरी सांड़नी दमदार है। आपसे रोका जाए तो हत्यारों को रोकना, तब तक मै कुमारों को लेकर जितनी दूर सम्भव होगा, निकल जाऊंगा।" अजाजी भी जागकर आ गए। सब सुनकर उन्होने रानी से कहा, "रानी,समय कम और काम बहुत है जाआ, कुमारों को अभी ले आओ। फिर छच्छर