लाल पानी १०६ वियरा पर आ धमका है। यह समाचार वज्रपात की भांति राजधानी मे फैल गया । जाम रावण ने बहुत चिन्ता और क्रोध प्रकट किया तथा हम्मीर को युद्ध में भिड जाने के लिए उकसाया। सुलतान मुहम्मद शाह वेगडा बडा विकराल पुरुष था। वह नित्य एक मन भोजन करता था। सौ केले, आध सेर शहद और बहुत-सी सटर-मटर चीजे तो वह कलेवे मे ही खा जाता था। एक बडे बैल के सीग के समान उसकी मूछे थी। उसने अनेक युद्ध जीते थे। चापानेर और जूनागढ के दुर्जय दुर्ग जीतकर उसने बेगडा की उपाधि पाई थी। उसीने सिंध के सब सूमरा और सोढ़ा राजपूतों को मुसलमान बनाया था। हम्मीर जाम ने अपने वृद्ध दीवान भूधरशाह से परामर्श कियाऔर उसीको बहुत-सी भेंट लेकर सुलतान के पास भेजा। भूधरशाह ने अपनी वचन-चातुरी से सुलतान को प्रसन्न कर लिया। और यह तय पाया कि यदि जाम हम्मीर अपनी पुत्री कमाबाई से सुलतान का विवाह कर दे तो वह बिना युद्ध किए लौट जाएगा और उसे और भी इलाके देगा। जाम हम्मीर ने निरुपाय यह शर्त स्वीकार की। धूम-धाम से राजपुत्री का सुलतान से विवाह हो गया और वह नई बेगम कमा- बाई, उसके भाई राजपुत्र अलैयाजी तथा बहुत-सा दान-दहेज, दास-दासी लेकर वापस गुजरात लौट गया। इस मामले मे भी रावणसिह ने बहुत दौड-धूप और आत्मीयता प्रकट की। और जब इस विपत्ति से पार पाकर जान हम्मीर ने सब मेहमानो को विदा किया तथा जब जाम रावणसिंह विदा होने लगा, तब उसने बहुत-बहुत प्रेम और अधी- नता प्रकट करके कहा कि आप एक बार राज-परिवार सहित मेरे गाव मे पधार- कर मेरे घर को पवित्र कीजिए और मुझे कृतकृत्य कीजिए। जाम हम्मीर ने कृत- ज्ञतापूर्वक रावण का यह निमन्त्रण स्वीकार किया। छच्छरबूटा जाम हम्मीर का, पुराना विश्वासीथा । वह हम्मीर के पिता के समय का नौकर था। उसने हम्मीर को भी गोद खिलाया था और हम्मीर के पुत्रो को भी। यह वृद्ध सेवक भारी राजभक्त, बुद्धिमान और धर्मात्मा था। जाम रावण की दुरभिसन्धि को वह खूब जानता था । हम्मीर को उसने बहुत समझाया कि वह इस धूर्त रावण का निमत्रण स्वीकार न करे और बीमारी का बहाना करके इसे टाल दे । उसने स्पष्ट कहा कि जाम रावण के गांव में जाकर हममें से कोई
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