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बर्मा रोड आया। उसने चुपचाप अपना हाथ साहब की ओर बढ़ा दिया। उसने कहा-साहब, आपका मतलब चाहे जो कुछ हो, पर आज से यह सफदर तब तक फर्माबरदार गुलाम रहेगा, जब तक इसके जिस्म मे एक बूद खून भी गर्म रहेगा। उसने साहब का हाथ झुककर चूम लिया। दोनो उठे और कालकोठरी से बाहर आए। लोग देख रहे थे कि इतना बड़ा जनरल एक खूनी डाकू के साथ अकारण ऐसा उपकार करके भी बराबरी के मित्र की भाति हंसता-बोलता चला जा रहा है। यह अग्रेज़ चरित्र का एक नमूना था जिसे समझने की सामर्थ्य किसी हिन्दु- स्तानी मे नही है। बगले पर आकर जनरल ने सफदर को स्नान-क्षौर करा पोशाक पहनाई। फिर अपने हाथ से उन्होने उसको कर्नल का फीता और तमगा लगाया और हाथ मिलाकर कहा-कर्नल सफदर, मैं तुम्हे एक हफ्ते की छुट्टी देता हूं। तुम घर के लोगो से मिलकर ठीक वक्त पर अपनी ड्यूटी पर हाजिर हो। तुम एक बहादुर आदमी हो। अपनी ज़िन्दगी मे तुमने अपनी बहादुरी ऐसे कामो में सर्फ की है कि जिससे नेकनामी नही मिली। खुदा का शुक्र मनाओ कि तुम फांसी के तख्ते से उतर आए और अब एक इज्जतदार फौजी अफसर हो । वचन दो कि तुम इस तमगे की बेइज्जती न करोगे और तुम्हारे लिए मुझे कभी शर्मिन्दा न होना पड़ेगा। सफदर ने फौजी सलाम किया और कहा-सर, जिस दिन सफदर अपने फर्ज से गिरेगा, उसी दिन उसकी मौत हो जाएगी। लेकिन आप क्या मुझसे इन छुट्टियो मे कोई खिदमत नही लेना चाहते ? "नही कर्नल, मैं चाहता हूँ कि तुम ये दिन अपने बाल-बच्चो में खुशी से बिताओ। वे इस वक्त परेशान होगे। फिर भी तुम एक काम कर सकते हो.." "हुक्म दीजिए।" "मै तुम्हारे पुराने सरदार जगबहादुर से एक बार मिलना चाहता हूं। क्या तुम उसे मेरे पास ला सकते हो?"सफदर चौका । उसने कहा, "यह शायद मुश्किल होगा, मगर मैं कोशिश करूंगा।" "जरूर करो, और इस काम को निहायत ज़रूरी समझो। इस बात के कहने की जरूरत नही है कि उसे मेरे पास आने में कोई डर नही है।"