पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/६७

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श्रमा संज्ञा पुं० श्रर्य्यमा संज्ञा पुं० सूर्य्य । 1 अर्वाचीन - वि० १. पीछे का । आधु- चिक । २. नवीन । अर्श-संज्ञा पुं० बवासीर । संज्ञा पुं० १. आकाश । २. स्वर्ग अर्हत - संज्ञा पुं० १. जैनियों के पूज्य देव । जिन । २. बुद्ध । श्रई - वि० १. पूज्य । २, योग्य । उप- युक्त । जैसे- पूजाई, मानाई, दंडाई । संज्ञा पुं० १. ईश्वर । २. इंद्र | अर्हणा - संज्ञा बी [वि०श्रईणीय] पूजा । अर्हत, श्रहन् - वि० पूजा । संज्ञा पुं० जिनदेव | श्रह्म - वि० पूज्य | मान्य । श्रलं -अव्य० दे० " श्रलम्” । अलंकार - संज्ञा पुं० [वि० अलंकृत ] १. श्राभूषण । २. वर्णन करने की वह रीति जिससे चमत्कार और रोचकता श्री जाय । अलंकृत - वि० विभूषित । अलंग-संज्ञा पुं० श्रर । तरफ़ । दिशा । अलंघनीय - वि० अलंध्य । अलंघ्य - वि० जिसे फाँद न सकें । अलक-संज्ञा पुं० मस्तक के इधर-उधर लटकते हुए बाल । केश । लट । अलकतरा - संज्ञा पुं० पत्थर के कोयले को भाग पर गलाकर निकाला हुआ एक गाढ़ा काला पदार्थ । अलक-लड़ेता-वि० लाडला । दुलारा । अलकसारा-वि० [स्त्री० अलकसलोरी] लाडला । दुलारा । अलका - संज्ञा बी० १. कुबेर की पुरी । २. आठ और दस वर्ष के बीच की ५६ अलबेला लड़की । श्रलंकापति-संज्ञा पुं० कुबेर । अलक, अलक्तक- संज्ञा पुं० १. लाख । पड़ा । २, का बना हुआ रंग जिसे स्त्रियाँ पैर में लगाती हैं । अलक्षित - वि० अप्रकट । अदृश्य । अलक्ष्य - वि० [सं०] जो न देख पड़े । त्र - वि० जो दिखाई न पड़े । गोचर । ईश्वर का एक विशेषण । श्रलखित - वि० दे० "अलक्षित" | अलग - वि० जुदा | पृथक् । अलगनी - संज्ञा स्त्री० श्राड़ी रस्सी या बस, जो कपड़े लटकाने या फैलाने के लिये घर में बांधा जाता है । डारा । अलगरज - वि० दे० " अलग़रज़ी" । अलगरजी + - वि० बेग़रज़ | बेपरवा । संज्ञा स्त्री० बेपरवाही । अलगाना- क्रि० स० १ अलग करना । २. जुदा करना । अलगोजा -संज्ञा पुं० एक प्रकार की बाँसुरी । अलता - संज्ञा पुं० लाल रंग जो स्त्रियाँ पैर में लगाती हैं । जावक | महावर । अलप - वि० दे० "अल्प” । अलपाका - संज्ञा पुं० १. ऊँट की तरह का एक जानवर जो दक्षिण अमेरिका में होता है । २. इस जानवर का ऊन । ३. एक प्रकार का पतला कपड़ा । अलफा -संज्ञा पुं० [स्त्री० अलफी] एक प्रकार का बिना बाँह का लंबा कुरता । अलबत्ता - भव्य० १. निस्संदेह । २. लेकिन । श्रलबेला - वि० [स्त्री० अलबेली] बाँका बना-ठना । छैला |