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मैं यह स्वीकार करता हूँ कि अँगरेजी तथा कुछ पाश्चात्य भाषाओं के बड़े बड़े कोषों में शब्दों की संख्या 'हिंदी शब्दसागर' की अपेक्षा द्विगुणित और त्रिगुणित भी है, परंतु यदि ध्यानपूर्वक देखा जाय तो इसका एक प्रधान कारण उनमें विज्ञान की अनेकानेक शाखाओं के सहस्रों पारिभाषिक शब्दों की बहुलता ही है। नित्यप्रति व्यवहार में आनेवाले अथवा कवियों और साहित्यिकों के द्वारा प्रयुक्त होनेवाले शब्दों की संख्या की तुलना में 'हिंदी शब्दसागर' किसी भी विदेशी भाषा के सम्मुख संकुचित नहीं हो सकता। इस बात को पुष्ट करने के लिये भी शब्दसागर के एक संक्षिप्त संस्करण की—जिसे व्यावहारिक तथा बालकोपयोगी संस्करण भी कहा जा सकता है—आवश्यकता समझ पड़ती थी। अतः इस संस्करण का संपादन करते हुए मैंने मूल शब्दसागर के शब्दों को कम करने की उतनी चेष्टा नहीं की जितनी शब्दों के पर्यायों और लाक्षणिक प्रयोगों (मुहाविरों) को घटा देने तथा शब्दों की व्युत्पत्ति छोड़ देने का उपक्रम किया है। इस कार्य में मुझे सभा की ओर से प्रकाशित, श्रीयुक्त रामचंद्र वर्मा द्वारा संपादित, 'संक्षिप्त हिंदी-शब्दसागर' का आाधार और आभार स्वीकार करना चाहिए। वर्माजी के 'संक्षिप्त हिंदी-शब्दसागर' और प्रस्तुत संस्करण में मुख्य अंतर यही है कि इसमें शब्दों की संख्या उससे विशेष न्यून न होती हुई भी इसका आकार लगभग उसका आधा कर दिया गया है।

मेरा यह विश्वास है कि व्यावहारिक दृष्टि से यह क्रिया हानिकारिणी नहीं हुई वरन् यह साधारण जनता और विद्यार्थियों के लिये अधिक ग्राह्य और अभीष्ट हुई है। साथ ही यह बात भी ध्यान में रखी गई है कि जहाँ 'संक्षिप्त-हिंदी -शब्दसागर' कालेज के विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है वहाँ यह संस्करण विशेषकर स्कूली विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रस्तुत किया गया है।