पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/३१

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अचला अचला- वि० स्त्री० जो न चले । स्थिर | ठहरी हुई। संज्ञा स्त्री० पृथ्वी । अचला सप्तमी - संज्ञा स्त्री० माघ शुक्ला सप्तमी । श्रचवन - संज्ञा पुं० १. श्राचमन । पीने की क्रिया । २. भोजन के पीछे हाथ- मुँह धोकर कुल्ला करना । अत्राका - क्रि० वि० सहसा । अचानक । एकबारगी । अचानक क्रि० वि० सहसा । अकस्मात् । अचार -संज्ञा पुं० मसालों के साथ तेल में कुछ दिन रखकर खट्टा किया हुआ फल या तरकारी । कचूमर । * संज्ञा पुं० दे० "श्राचार" । संज्ञा पुं० चिरौंजी का पेड़ । अचारज -संज्ञा पुं० दे० "श्राचाय्यै" " अचारी - संज्ञा पुं० १. श्राचार-विचार से रहनेवाला आदमी । २. रामानुज संप्रदाय का वैष्णव । संज्ञा स्त्री० छिले हुए कच्चे आम की धूप में सिकाई फकि । अचिंत - वि०चिंतारहित । निश्चिंत । बेफ़िक्र | ३. २३ अचिंतनीय - वि० जो ध्यान में न श्रा सके। अज्ञेय । दुर्बोध । अचिंतित - वि० १. जिसका चिंतन न किया गया हो। बिना सोचा विचारा | २. आकस्मिक | निश्चिंत । बेफिक्र | अचिंत्य - वि० १. जिसका चिंतन न हो सके । २. जिसका अंदाज़ा न हो सके। अतुल । ३. आशा से अधिक । ४. आकस्मिक । अच्युत श्रचित् संज्ञा पुं० जड़ प्रकृति । श्रचिर- क्रि० वि० शीघ्र | जल्दी | श्रचीता - वि० [स्त्री० प्रचीती ] १. जिसका पहले से अनुमान न हो । आकस्मिक | २. बहुत । वि० [सं० अर्चित] निश्चिंत । बेफिक्र । अचूक - वि० [सं० अच्युत ] १. जो अवश्य फल दिखावे । २. ठीक । पक्का । क्रि० वि० १. सफ़ाई से । कौशल से । २. ज़रूर । श्रचेत वि० १. बेसुध । बेहोश । २. व्याकुल । ३. अनजान । बेख़बर | ४. नासमझ । मूढ़ । ५. जड़ । * संज्ञा पुं० जड़ प्रकृति । जड़त्व । माया । अज्ञान । श्रचेतन - वि० १. जिसमें सुख-दुःख आदि के अनुभव की शक्ति न हो । चेतना रहित । जड़ | २. मूर्च्छित । श्रचैतन्य - संज्ञा पुं० वह जो ज्ञान- स्वरूप न हो । अनात्मा । जढ़ | श्रचीना - संज्ञा पुं० श्राचमन करने या पीने का बरतन । कटोरा । श्रच्छ - वि० स्वच्छ । निर्मल । संज्ञा पुं० दे० " अक्ष” 1 च्छत - संज्ञा पुं० दे० " श्रचत" । अच्छर + - संज्ञा पुं० दे० " अक्षर " । अच्छरा, अच्छरी - संज्ञा अप्सरा । स्त्री० श्रच्छा - वि० उत्तम । बढ़िया । उमदा | अच्छाई -संज्ञा स्त्री० अच्छापन । उत्त- मता । श्रच्छोहिनी - संज्ञा स्त्री० दे० "अक्षौ हिणी" । श्रच्युत - वि० [सं०] १. जो गिरा म हो । २. अटल । स्थिर । ३. नित्य । अविनाशी । । ४. जो विचलित न हो।