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भूमिका

काशी नागरी प्रचारिणी सभा जिन दिनों 'हिंदी-शब्दसागर' के बृहत् और प्रामाणिक कोष का प्रणयन करा रही थी उन्हीं दिनों मुझे उसके एक संक्षिप्त संस्करण की आवश्यकता का अनुभव हो गया था। 'शब्दसागर' के बृहदाकार में ही उसे संक्षिप्त करने की प्रेरणा निहित है और उसकी प्रामाणिकता एक ऐसी दृढ़ नींव है जिस पर हिंदी-भाषा-कोष के छोटे-बड़े अनेक भवन बनाए जा सकते हैं तथा वे अपनी दृढ़ता के कारण शताब्दियों तक हिंदी-भाषी जनता के भाषा-भवन का काम दे सकते हैं। मेरे सामने प्रश्न इतना ही था कि उक्त संक्षिप्त संस्करण का स्वरूप क्या हो और वह सिद्धांत तथा व्यवहार की किन दृष्टियों को सम्मुख रखकर प्रस्तुत किया जाय।

'हिंदी शब्दसागर' में मूल शब्दों की संख्या प्रायः एक लाख तक पहुँची है, जो भारतीय भाषाओं के कोषों की तुलना में सबसे बढ़ी हुई कही जा सकती है। इस संख्या के द्वारा हिंदी अपनी राष्ट्र-भाषा बनने की योग्यता को एक ओर सिद्ध कर सकी और दूसरी ओर वह संसार की अन्य उन्नत भाषाओं के समकक्ष रखे जाने का पुष्ट प्रमाण भी दे सकी। 'हिंदी-शब्दसागर' के द्वारा इन दोनों ही उन्नत लक्ष्यों की पूर्ति हुई। इन दोनों ही लक्ष्यों का महत्त्व राष्ट्रीय और जातीय सभ्यता तथा संस्कृति की दृष्टि से कितना बड़ा है, यह वे अच्छी तरह समझ सकते हैं जो भाषा के विस्तार, सौंदर्य और उन्नति को उस देश के और उस समाज के विकास का मापदंड मानते हैं। यहाँ उसकी अधिक व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं। प्रसन्नता की बात है कि 'हिंदी-शब्दसागर' का महत्व भारतीय और विदेशी विद्वानों ने बहुत कुछ समझ लिया है और समय की गति के साथ अधिकाधिक समझते जायँगे।