पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/२७

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अगम्य श्रगम्य- वि० १. जहाँ कोई न जा सके । श्रवघट | २. कठिन । मुश- किल । ३. बहुत । अत्यंत । ४. जिसमें बुद्धि न पहुँचे । ५. बहुत गहरा । अगर-संज्ञा पुं० एक पेड़ जिसकी लकड़ी सुगंधित होती है । अव्य० यदि । जो । अगरई - वि० श्यामता लिए हुए सुन- हले संदली रंग का । अगरचे - अव्य० गोकि । यद्यपि । अगरबत्ती-संज्ञा स्त्री० सुगंध के निमित्त जलाने की पतली सींक या बत्ती । अगरा - वि० १. श्रगला । २. श्रेष्ठ । उत्तम । ३. अधिक | अगरु - संज्ञा पुं० अगर लकड़ी । ऊद । अगल बगल - क्रि० वि० इधर उधर । दोनों श्रोर । श्रासपास । अगला - वि० [स्त्री० अगली ] १. आगे का । सामने का । २. पहले का । ३. पुराना । ४. श्रागामी । श्राने- बाला । ५. दूसरा । संज्ञ पुं० १. अगुश्रा । २. चतुर श्रादमी । ३. पुरखा । अगवाई - संज्ञा स्त्री० अगवानी | अभ्य ना 1 संज्ञा पुं० श्रागे चलनेवाला । अगवाड़ा - संज्ञा पुं० घर के आगे का भाग | "पिछवाड़ा” का उलटा । अगवान -संज्ञा पुं० [सं० भ्रय + यान ] विवाह में कन्या पक्ष के लोग जो बरात को आगे से जाकर लेते हैं । संज्ञा स्त्री० दे० "अगवानी" | अगवानी - संज्ञा स्त्री० १. अतिथि के निकट पहुँचने पर उससे सादर मि- लना । अभ्यर्थना । पेशवाई । २. १६ अमार विवाह में बरात को आगे से लेने की रीति ।

  • संज्ञा पुं० अगुश्रा । नेता । श्रगवाँसी - संज्ञा स्त्री० १. हल की वह लकड़ी जिसमें फाल लगा रहता है । २. पैदावार में हलवाहे का भाग । अगसार - क्रि० वि० श्रागे । अगस्त- संज्ञा पुं० दे० " अगस्त्य" । अगस्त्य - संज्ञा पुं० १. एक ऋषि जिन्होंने समुद्र साखा था । २. एक तारा । ३. एक पेड़ जिसके फूल अर्धचंद्राकार लाल या सफेद होते हैं । अगह - वि० १. हाथ में न थाने लायक । चंचल | २. जो वर्णन और चिंतन के बाहर हो । ३. कठिन | मुश्किल ।

अगहन - संज्ञा पुं० [वि० भगहनिया, अगहनी ] हेमंत ऋतु का पहला महीना | मार्गशीर्ष । मृगसिर । अगहनी - संज्ञा स्त्री० वह फ़सल जो गहन में काटी जाती है 1 अग हुँड़ - क्रि० वि० आगे। आगे की श्रर । अगाऊ - क्रि० वि० अग्रिम । पेशगी । वि० अगला । आगे का । क्रि० वि० श्रागे । पहले । प्रथम । अगाड़ा। -संज्ञा पुं० १. कछार । तरी । २. यात्री का वह सामान जो पहले से आगे के पड़ाव पर भेज दिया जाता है | पेशखेमा | गाड़ी - क्रि० वि० पूर्व । पहले । १. आगे । २. अगाध - वि० १. अथाह । २. बहुत । ३. समझ में न आने योग्य । संज्ञा पुं० छेद । गड्ढा । अगार-संज्ञा पुं० दे० " प्रागार""