अंशुमाली अंशुमाली -संज्ञा पुं० सूर्य्यं । अंस-संज्ञा पुं० दे० "अंश" । श्रंसुश्रा, अंसुश्रा* +-संज्ञा पुं० दे० “र्धांसू” । ह - संज्ञा पुं० १. पाप । दुष्कर्म । अप- राध । २. दुःख । व्याकुलता । ३. विघ्न । बाधा | अँहड़ा - संज्ञा पुं० तौलने का बाट । बटखरा । - उप० संज्ञा और विशेषण शब्दों से पहिले लगकर यह उनके अर्थों में फेर- फार करता है । जिस शब्द के पहले यह लगाया जाता है, उस शब्द के अर्थ का प्रायः श्रभाव सूचित करता है। जैसे - अधर्म, अन्याय, अचल । कहीं कहीं यह अक्षर शब्द के अर्थ को दूषित भी करता है । जैसे- श्रभागा, काल | स्वर से आरंभ होनेवाले संस्कृत शब्दों के पहले जब इस अक्षर को लगाना होता है, तब उसे "न" कर देते हैं। जैसे—अनंत, अनेक, अनीश्वर । संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु । २. विराट | ३. श्रभि । ४. विश्व । ५. ब्रह्मा । ६. इंद्र । ७ ललाट । ८. वायु । ६. कुवेर । १०. श्रमृत । ११. कीन्ति । १२. सरस्वती । वि० १. रक्षक । २. उत्पन्न करने- वाला । अउर -संयो० दे० "और" । ३. कंटक - वि० १. बिना कांटे का । २. निविन । बिना रोक-टोक का । मनु-रहित । कंपन - वि० [वि० अकंपित, कंप्य ] न कपिनेवाला । स्थिर । १३ अकबक क- संज्ञा पुं० १. पाप । २. दुःख । अकच्छ - वि० १. नंगा । २. ब्यभि- चारी | परस्त्रीगामी । ३. परेशान । पीड़ित । अकड़ - संज्ञा स्त्री० १. ऐंठ । तनाव । २. घमंड | अहंकार | शेखी । ३. ढिठाई । ४. हठ । अकड़ना - क्रि० अ० [संज्ञा अकड़, अक- डाव ] १. ऐंठना । २. ठिठुरना । सुन होना। ३. तनना । ४. शेखी करना । ५. ढिठाई करना । ६. हठ करना । ७. चिटकना । अकड़बाज़ - वि० ऐंठदार | शेखीबाज़ | श्रभिमानी । अकड़बाज़ी-संज्ञा स्त्री० ऐंठ । शेखी । श्रभिमान । अकड़ाव - संज्ञा पुं० ऐंठन । खिंचाव | अकडू । -संज्ञा पुं० दे० " अकड़बाज़" । अकड़त - वि० दे० " कढ़बाज़" । श्रकत - वि० सारा । समूचा । क्रि० वि० बिलकुल । सरासर । कत्थ - वि० दे० "अकथ" । अकथ - वि० १. जो कहा न जा सके । अकथनीय । २. न कहने योग्य । अकथनीय - वि० न कहे जाने योग्य । कथ्य - वि० न कहने योग्य । श्रकधक-संज्ञा पुं० श्राशंका | आगा-पीछा । सेोच-विचार । भय । डर । अकनना+ - क्रि० स० कान लगाकर सुनना । आहट लेना । श्रकना- क्रि० प्र० ऊबना । घबराना । अकबक -संज्ञा स्त्री० १. निरर्थक वाक्य | अनाप शनाप । २. घबराहट । खटका | वि० [सं० अवाक् ] भैौचक्का ।
पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/२१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।