पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१७१

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कालीन कालीन - वि० काल-संबंधी । कालीन -संज्ञा पुं० गलीचा । कालीमिर्च - संज्ञा स्त्री० गोल मिर्च । काली शीतला - संज्ञा स्त्री० एक प्रकार की शीतला या चेचक जिसमें काले दाने निकलते हैं । काल्पनिक - संज्ञा पुं० कल्पना करने- वाला । वि० कल्पित । "कल" । काल्ह + - क्रि० वि० दे० कावा - संज्ञा पुं० घोड़े को एक वृत्त में चक्कर देने की क्रिया । काव्य-संज्ञा पुं० वह वाक्य या वाक्य- रचना जिससे चित्त किसी रस या वेग से पूर्ण हो । काव्यलिंग-संज्ञा पुं० एक अर्थालंकार जिसमें किसी कही हुई बात का कारण वाक्य के श्रर्थ द्वारा या पद के अर्थ द्वारा दिखाया जाय । काश - संज्ञा पुं० एक प्रकार की घास । काशिका - वि० स्त्री० प्रकाश करने- वाली । संज्ञा स्त्री० काशीपुरी । काशीकरवट - संज्ञा पुं० काशीस्थ एक वीर्थस्थान जहाँ प्राचीन काल में लोग आरे के नीचे कटकर अपने प्राण देना बहुत पुण्य समझते थे । काशीफल - संज्ञा पुं० कुम्हड़ा । काश्त - संज्ञा स्त्री० १, खेती । २. ज़मीं - arrar parts लगान देकर उसकी ज़मीन पर खेती करने का स्वस्व । काश्तकार - संज्ञा पुं० १. किसान । २. वह जिसने ज़मींदार को लगान देकर उसकी जमीन पर खेती करने का स्वत्व प्राप्त किया हो । १६३ किंकिणी काश्तकारी -संज्ञा स्त्री० खेती-बारी । काश्मरी -संज्ञा स्त्री० गंभारी का पेड़ । काश्मीर - संज्ञा पुं० एक देश का नाम । "कश्मीर" । काश्मीरा-संज्ञा पुं० एक प्रकार का मोटा ऊनी कपड़ा । काश्यप - वि० कश्यप प्रजापति के वंश या गोत्र का । कश्यप-संबंधी । काषाय - वि० १. हड़, बहेड़े आदि कसैली वस्तुनों में रंगा हुआ । २. गेरुश्रा । काष्ठ-संज्ञा पुं० लकड़ी । काष्ठा-संज्ञा स्त्री० हद | कास - संज्ञा पुं० खाँसी । संज्ञा पुं० काँस | कासा - संज्ञा पुं० प्याला । कासार - संज्ञा पुं० १. तालाब । २. दे० " कसार" | कासिद - संज्ञा पुं० हरकारा । का हूँ।-प्रत्य० दे० " कहूँ" । काह - क्रि० वि० क्या ? काहि - सर्व० किसको ? काहिल - वि० श्राजसी । काहिली -संज्ञा स्त्री० सुस्ती । काही - वि० कालापन लिए हुए हरा । काहु - सर्व० दे० "काहू" । काहू - सर्व० किसी । संज्ञा पुं० गोभी की तरह का एक पौधा जिसके बीज दवा के काम आते हैं। काहे - क्रि० वि० क्यों ? कि- भव्य० दे० " किम्" । किंकर - संज्ञा पुं० [खो० किंकरी] दास । किं-कलव्य- विमूढ़ - वि० हुआ । किंकिणी - संज्ञा श्री० करधनी । घबराया