पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१४८

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कब्ज़ादार किवाड़ या संदूक में जड़े जानेवाले लोहे या पीतल की चद्दर के बने हुए दो खूँटे टुकड़े । ३. अधिकार । कब्ज़ादार - संज्ञा पुं० [भाव० संज्ञा कुब्जादारी ] १. वह अधिकारी जिसका कब्ज़ा हो । २. दखीलकार असामी । वि० जिसमें क़ब्ज़ा लगा हो । कब्जियत - संज्ञा श्री० पाखाने का साफ न आना । १४० कमरखी कमच्छा - संज्ञा स्त्री० दे० " कामाख्या " । कमज़ोर - वि० दुर्बल । कमज़ोरी - संज्ञा स्त्री० दुर्बलता । निर्बलता | कमठ-संज्ञा पुं० [स्त्री० कमठी ] १. कछुआ । २. साधुओं का तुंबा । ३. बस । कमठा - संज्ञा पुं० धनुष । कमठी - संज्ञा पुं० कछुई । क़ब्र -संज्ञा स्त्रो० १. वह गड्ढा जिसमें मुसलमान, ईसाई श्रादि श्रपन मुर्दे गाड़ने हैं । २. वह चबूतरा जो ऐसे कमती -संज्ञा स्त्री० कमी । गड्ढे के ऊपर बनाया जाता है । कब्रिस्तान - सज्ञा पु० वह स्थान जहाँ है । संज्ञा खो० बाँस की पतली लचीली धज्जो । कभी - क्रि० वि० किसी समय । कभू - क्रि० वि० दे० "कभी" । कमंगर - संज्ञा पुं० १ कमान बनाने- वाल्ला । २. जोड़ की उग्बड़ो हुई हड्डी कसली जगह पर बैठानेवाला । + वि० दक्ष । कमंगरी - संज्ञा स्त्री० १. कमान बनाने का पेशा या हुनर । २. हड्डी बैठाने का काम । कमंडल - संज्ञा पुं० दे० " कमंडलु " | कमंडली - वि० १. माधु । २. पाखंडी । कमंडलु - संज्ञा पुं० संन्यासियों का जल- पात्र, जो धातु, मिट्टी, तुमड़ी. दरि- याई नारियल श्रादि का होता है । कमंद - संज्ञा पु० दे० "कबंध" । संज्ञा स्त्री० १. पाश । २ फंदेदार रस्सी जिसे फेंककर और ऊँचे मकानों पर चढ़ते हैं । -कम-वि० थोडा | क्रि० वि० बहुधा नहीं । - कमसल - वि० दोगला | वि० कम । कमना - क्रि० अ० कम होना । कमनीय- वि० १. कामना करने योग्य । २. मनोहर । कमनैत- -संज्ञा पु० तीरंदाज़ | कमनैती -सज्ञा स्त्री० तीर चलाने की विद्या | कमबख्त - वि० भाग्यहीन । कमबख्ती - संज्ञा स्त्री० बदनसीबी । कमर - संज्ञा स्त्री० शरीर का मध्य भाग जो पेट और पीठ के नीचे और पेडू तथा चूतड़ के ऊपर होता है । कमरकोट, कमर कोटा - संज्ञा पुं० १. वह छोटी दीवार जो किले और चार-दीवारियों के ऊपर होती है और जिसमें कँगूरे और छेद होते हैं। २. रक्षा के लिये घेरी हुई दीवार । कमरख - संज्ञा स्त्री० १. एक पेड़ जिसके फकवाले लंबे लंबे फल खट्टे होते हैं और खाए जाते हैं । कर्मरंग । २. इस पेड़ का फल | कमरखी - वि० जिसमें कमरख के ऐसी भड़ी हुई फर्के ।