पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१३४

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भोल झोल-संज्ञा पुं० सूरन । वि० गीला । श्रीलती-संज्ञा खो० श्रोरी । चोला -संज्ञा पुं० गिरते हुए मेह के जमे हुए गोले । पत्थर । विo बहुत सर्द | श्रोलियाना- क्रि० स० गोद में भरना । क्रि० स० घुसाना । श्रोली -संज्ञा स्त्री० १. गोद । २. अंचल । श्रोषधि-संज्ञा स्त्री० जड़ी-बूटी जो दवा में काम आवे । श्रोषधिपति, श्रोषधीश -संज्ञा पुं० १. चंद्रमा । २. कपूर । श्रेष्ठ -संज्ञा पुं० होंठ | श्रोष्ठय - वि० श्रठ संबंधी । १२६ श्रीघट श्रोस -संज्ञा श्री० शीत । श्रसाना - क्रि० स० दाँये हुए गुल्ले को हवा में उड़ाना, जिससे दाना और भूसा अलग अलग हो जाय । बरसाना । श्री सार-संज्ञा पुं० फैलाव । विस्तार । श्रीसारा | -संज्ञा पुं० [स्त्री० आसारी ] दालान । श्रोह - भव्य ० ० अल्पा० आश्वय्यं, दुःख या बेपरवाई का सूचक शब्द | श्रोहदा -संज्ञा पुं० पद । श्राहदेदार- - सज्ञा पुं० पदाधिकारी । लोहार -संज्ञा पुं० परदा । श्रोहो- - अव्य० आश्चर्य या भानंद- सूचक शब्द | श्री-संस्कृत वर्णमाला का चैौदहवीं और हिंदी वर्णमाला का ग्यारहव स्वर वर्ण । इसके उच्चारण का स्थान कंठ और श्रोष्ठ है । यह अ + श्रो के संयोग से बना है । औगा - वि० गूँगा । गी-संज्ञा स्त्री० चुप्पी । गूंगापन । गना- क्रि० क्र० स० गाड़ी के पहिए की धुरी में तेल देना । घना, श्रघाना । क्रि० झपकी लेना । घाई + - संज्ञा स्त्री० झपकी । क्रि० स० ढालना । अ० औधना- क्रि० प्र० उलटा होना । क्रि० स० उल्टा कर देना । औंधा - वि० ० [स्त्री० भौधा ] उलटा । श्रधाना- क्रि० स० उलटना । श्री-श्रव्य ० दे० "और" । औक़ात -संज्ञा पुं० बहु० समय । संज्ञा स्त्री० एक० हैसियत । श्रीगत - संज्ञा स्त्री० 28 दुर्दशा | वि० दे० "अवगत" । औगी-संज्ञा खो० रस्सी बटकर बनाया हुआ कोड़ा | पैना ' संज्ञा खो० जानवरों को फँसाने का गड्ढा जो घास-फूस से ढंका रहता है । ठ - संज्ञा स्त्री० उठा या उभड़ा हुआा चौगुनी - संज्ञा पुं० दे० " अवगुण "। किनारा | औघट - वि० दे० " श्रवघट" ।