पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१३

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अँगूठा अँगूठा - संज्ञा पुं० मनुष्य के हाथ की सबसे छोटी और मोटी उँगली । पहली उँगली । अंगूठी - संज्ञा स्त्री० मुँदरी । मुत्रिका | छल्ला | अंगूर - संज्ञा पुं० दाख । द्वाचा | अँगूरी - वि० १. अंगूर से बना हुआ । २. अंगूर के रंग का । संज्ञा पुं० हलका हरा रंग | अँगेजना - क्रि० स० १ सहना । बर दाश्त करना | उठाना । २. अंगीकार करना । स्वीकार करना । अँगेठी - संज्ञा स्त्री० दे० "अँगीठी" | अँगेरना- क्रि० स० १. स्वीकार करना। मंजूर करना। २. सहना । बरदाश्त करना । अँगोछना- क्रि० अ० गीले कपड़े से देह पोंछना | अँगोड़ा - संज्ञा पुं० देह पोंछने का कपड़ा । तौलिया । गमछा | अँगोळी - संज्ञा स्त्री० १. देह पोंछने के लिये छोटा कपड़ा । २. छोटी धोती जिससे कमर से श्राधी जाँघ तक ढक जाय । अँगोरा - संज्ञा पुं० मच्छर | अँगारिया - संज्ञा पुं० वह हलवाहा जिसे कुछ मजदूरी न देकर हल-बैल उधार श्रंस - संज्ञा पुं० पाप । पातक | अँघिया - संज्ञा स्त्री० घाटा या मैदा चा लने की छलनी । अँगिया । श्रधि - संज्ञा पुं० पैर । चरा | पवि | त्रिप-संज्ञा पुं० पेड़। वृक्ष | अँचरा - संज्ञा पुं० दे० “आँचल” । अंचल - संज्ञा पुं० १. साड़ी का छोर । अंजलि, अंजली आँचल | पल्ला | छोर । दे० "आँ चल" । २. किनारा | तट | अँचला-संज्ञा पुं० १. दे० "श्रांचल" । २. कपड़े का एक टुकड़ा जिसे साधु लोग धोती के स्थान पर लपेटे रहते हैं। श्रंचित - वि० पूजित | आराधित | अंडर-संज्ञा पुं० १. मुँह के भीतर का एक रोग जिसमें कांटे से उभर आते हैं । ↑ २. अक्षर | ३. टोना | जादू | श्रंज - संज्ञा पुं० दे० "कंज्ञ” । अंजन - संज्ञा पुं० १. सुरमा | काजल | २. स्याही । ३. छिरकली । ४. नटी । ५. एक पर्वत । ६. लेप । ७. माया । अंजनकेश - संज्ञा पुं० दीपक | दीया | श्रंजन - शलाका - संज्ञा स्त्री० अंजन या सुरमा लगाने की सलाई । श्रंजनसार - वि० सुरमा लगा हुआ । श्रंजनहारी- संज्ञा स्त्री० १. आँख की पलक के किनारे की फुंसी। बिलनी । २. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा जिसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं। अंजना - संज्ञा स्त्री० १. केशरी नामक बंदर की स्त्री जिसके गर्भ से हनुमान् उत्पन्न हुए थे । २. बिलनी । अंजनानंदन - संज्ञा पुं० अंजना के पुत्र हनुमान् । अंजनी - संज्ञा स्त्री० १ हनुमान् की माता अंजना | २. कुटकी । ३. आँख की पलक की फुड़िया | बिलनी । श्रंजरपंजर - संज्ञा पुं० देह का बंद | शरीर का जोड़ । ठठरी | पसली । अंजलि, अंजली - संज्ञा स्त्री० १. दोने हथेलियों को मिलाकर बनाया हुआ संपुट । २. उतनी वस्तु जितनी एक अँजुली में आवे । दो पसर । ३.