पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१०४

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ईस ईस – संज्ञा पुं० दे० "ईश" । ईसन - संज्ञा पुं० ईशान कोण | ईसर - संज्ञा पुं० ऐश्वर्यं । ईसवी - वि० ईसा से संबंध रखनेवाला । ईसा - संज्ञा पुं० ईसाई धर्म के प्रवर्त्तक । ६६ उकड ईसा मसीह | ईसाई - वि० ईसा को माननेवाला । ईसा के बताए धर्म पर चखने- वाला । ईहा- संज्ञा स्त्री० १. चेष्टा । २. इच्छा। ३. लोभ । उ - हिंदी वर्णमाला का पाँचव अक्षर जिसका उच्चारण-स्थान श्रोष्ठ है । - भव्य० एक प्रायः अव्यक्त शब्द जो प्रश्न, अवज्ञा या क्रोध सूचित करने के लिये व्यवहृत होता है । उँगली - संज्ञा स्त्री० हथेली के छोरों से निकले हुए फलियों के आकार के पाँच sara जो मिलकर वस्तुओं को ग्रहण करते हैं और जिनके छोरों पर स्पर्शज्ञान की शक्ति अधिक होती है । उँघाई -संज्ञा स्त्री० दे० "ऊँघ", “औंधाई” । खाट उंचन -संज्ञा बी० अदवायन । की अदवान । उंचाव† संज्ञा पुं० ऊँचाई । उच्चास-संज्ञा पुं० दे० " ऊँचाई" । छ - संज्ञा स्त्री० सीला बिनना । उंछवृत्ति-संज्ञा स्त्री० खेत में गिरे हुए दानों को चुनकर जीवन निर्वाह करने का कर्म । उंदुर-संज्ञा पुं० चूहा । मूसा । उँह- इ- अव्य० १. अस्वीकार, घृणा या बे-परवाही का सूचक शब्द । २. उ वेदनासूचक शब्द । कराहने का शब्द | उ - भव्य० भी । उचना- क्रि० प्र० दे० "उगना" । उचाना - किं० स० दे० "उगाना" । * क्रि० स० किसी के मारने के जिये हाथ या हथियार तानना । उऋण - वि० ऋणमुक्त । जिसका ऋण से उद्धार हो गया हो । उकचना- क्रि० प्र०१ उखड़ना । अलग होना । २. पर्स से अलग होना । उचढ़ना । ३. उठ भागना । उकटना- क्रि० स० दे० " उघटना" । उकटा - वि० उकटनेवाला । एहसान जतानेवाला । संज्ञा पुं० किसी के किए हुए अपराध या अपने उपकार को बार बार जताने का कार्य । उकठना- क्रि० भ० सूखना । सूख- कर कड़ा होना । उकठा - वि० शुष्क । सूखा । उकड संज्ञा पुं० घुटने मोड़कर बैठने की एक मुद्रा जिसमें दोनों तलवे ज़मीन पर पूरे बैठते हैं और चूतड़ ऍड़ियों से लगे रहते हैं ।