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बाण भट्ट की आत्म-कथा

वाया भट्ट की अस्मि-कथा कृष्ण जैसे सज्जन को तूने क्यों उत्तेजित किया है छिः, ऐसा भी करते हैं । ऐसा कह कर उन्होंने मेरा माथा सहलाया और कुमार की ओर बढ़कर बोले-‘कुमार, उतेजित क्यों होते हो १ वत्स, बाण भट्ट नादान है, राजोचित सम्मान करना नहीं जानता । उसकी बात को अर्थ-भरे समझो, शब्द-व्यवहार पर न जाओ ।' फिर उन्होंने बड़े प्रेम से कुमार की पीठ पर थपकी दी । बोले-बैठो । प्राचार्य देव अासन पर और हम दोनों कुट्टिम-भूमि पर बैठ गए। कुमार ने ही पहले शुरू किया---'अर्य, बाण भट्ट स्थाएवीश्वर के राज- वंश से घृणा करते हैं ! आचार्य ने आश्चर्य-मुद्रा में मेरी ओर ताका--‘शान्त पापम् ! हाँ बेटा, तू ने यहां कहा हैं ! मैंने शान्त भाव से कहा---'आर्य, देवपुत्र तुवर मिलिन्द को कन्या को अपमानित करनेवाले राज कुल को प्रश्रय देनेवाले राजवंश ने अपने को पूज्य-पूजन के अयोग्य सिद्ध किया है । मैं देवपुत्र-नन्दिनी को उस राजवंश से सम्बद्ध किसी व्यक्ति के गृह में श्राश्रय नहीं लेने दे सकता। यह बात मैं उनकी अनुमति पाकर ही कह रहा हूँ। मेरा अविनय क्षमा हो; किन्तु इस समय मैं अकिंचन बाण भट्ट के रूप में नहीं बोल रहा हूँ, बल्कि देवपुत्र तुवर मिलिन्द की प्राणाधि का कन्या की प्रतिष्ठा और मर्यादा के रक्षक के रूप में बोल रहा हूँ। बाण भट्ट कुमार का वशंवद है; पर देवपुत्र तुवर मिलिन्द के हित अभिमान के प्रतिनिधि के रूप में आप उससे झुकने की आशा नहीं कर सकते । साधु वत्स, तुमने देवपुत्र की मर्यादा के अनुकूल कहा है । और कुमार, तुम धीर हो, विवेकी हो, तुम्हें स्थाएवीश्वर के कलंक-पंक को धी डालने का पवित्र कार्य करना है। तुम्हीं इस कार्य को कर सकते हो। दूध का जला मट्ठा फेक कर पिया करता है। ना कुमार, तुम्हें यु- मती चन्द्रदीधिति के सम्मान का ध्यान रखना होगा। एक बार