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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाए भट्ट की आत्म-कथा है, उससे उद्भासित सत्य की नहीं । ‘तो दीपक के दोष से प्रकाश की क्षति नहीं होती, आर्य ! । ‘कुतर्क कर रहा है श्रायुष्मान् , उपमा एकांश में होती है । तद्- गत भूयोधर्मवत्त्व ही सादृश्य है । धर्म की साधारणता की ओर देख, तो उपमा का तात्पर्य समझ में आयगा । सद्धर्म में कुतर्क का प्राबल्य बढ़ रहा है, आयुष्मान् ! संयत बन कर आचार्यों के वाक्य का तात्पर्य अनुशीलन कर । कुतर्क सद्विचारों की दादाग्नि है, वत्स ! अभी जा, मुझे ज़रूरी काम है। फिर आना । भिक्षुओं से कह दे कि जब तक हैं। दक्ष भट्ट से वार्तालाप करू, तब तक इधर कोई न अाय ।। | आदेश पाकर शिष्य वहाँ से उठ गया और आचार्य ने मेरी श्रोर जिज्ञासा के साथ देखा । मैं मुग्धभाव से प्राचार्य की प्रेम-पूर्ण अध्यापन- शैली को देख रहा था ! थोड़ी देर तक भूल ही गया था कि मैं किस काम से आया हूँ। फिर बिना किसी भूमिका के ही मैंने कहा-विषम- समर-विजयी बाहीक-विभर्दन प्रस्यन्त-बाड़व देवपुत्र तुवर मिलिन्द की कन्या आपका दर्शन पाना चाहती हैं । आचार्य को जैसे विस्मय का एक धक्का लगा, मानो उसे धक्के से वे टल गए। जरा आगे झुक कर अखि फाड़ कर देखते हुए बोले- क्या कहा वत्स, देवपुत्र तुवर मिलिन्द की एक मात्र कन्या चन्द्रदीधिति अभी जीवित है १ वह कहाँ है, वत्स १ किस अवस्था में तुमने देखा है १ वह कुशल से तो है ? मैंने सुना था, अत्यन्त-दस्युओं ने उसे हरण किया है। तुमने ठीक देखा है, वत्स ! वह सुकुमारता की मूर्ति है, पवित्रता की उत्स है, शोभा की खानि है, शुचिता की आश्रय-भूमि हैं, मूर्त्तिमति भक्ति है, कान्तिमती करुणा है । आहा, वह तुवर मिलिन्द की नयनतारा अभी जीवित है १ बताओ वत्स, मैं उसे देखने को व्याकुल हूँ। मैंने उनका नाम पहली बार सुना। मैं हाथ जोड़ कर बोला---